अगस्त क्रांति की चिनगारी
शोला बनकर भड़की उठी,
सावन में आज़ादी की बदली
बिजली बनकर कड़क उठी।
तीन दिसम्बर की तिथि थी
अट्ठारह सौ नवासी साल था,
जन्म लिया था वह मतवाला
अंग्रेजों का वह जो काल था।
लक्ष्मीप्रिया-त्रैलोक्यनाथ जी
मात-पिता भी तो धन्य हुए,
धन्य धरा भारत की हो गयी
सब भारतवासी भी धन्य हुए।
किंग्जफोर्ड के वाहन पर जब
बिस्फोटक से हमला बोल दिया,
'युगान्तर' के उन वीर जवानों ने
खुलकर तब मोर्चा खोल दिया।
उन अत्याचारी अंग्रेजों ने तब
उनपर इतने अत्याचार किये,
ग्यारह अगस्त उन्नीस सौ आठ
को फाँसी का उनको हार दिये।
खुदीराम बोस का नाम अमर
है स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी में,
इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में
शहीदों की अमर कहानी में।
वह गीता को हाथों में लेकर
फाँसी का फंदा अपनाया था,
हँसते-हँसते ही वह मतवाला
अपने मौत को गले लगाया था।
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश
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