नारी है करुणा का सागर
नारी में माँ की ममता है,
सर्वोच्च शक्ति की देवी है
नारी में अद्भुत क्षमता है।
नारी श्रद्धा-स्नेह लुटाती
नारी ही शीतल छाया है,
हो गया धन्य धरा पर वह
जो नारी निष्ठा को पाया है।
है नारी निर्मल पानी जैसी
वाणी से अमृत बहता है।..
जिस घर में पूजी जाती है
घर देवालय बन जाता है,
संस्कार सिखाती है घर में
घर विद्यालय बन जाता है।
दु:ख सहकर खुशियाँ देती
नारी मन-पावन रहता है।..
नारी तो सृष्टि की जननी है
नर नारायण बन जाता है,
नारी दुर्गा काली बन जाती
कर्तव्य परायण बन जाता है।
नारी पर उपकारी है मन की
आँचल से क्षीर बरसता है।
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त ' विवश '
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