डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश

मैं किसन भक्ति का मीरा हूँ


 


ना भक्तिकाव्य का सूरदास 


ना सन्तकाव्य का कबिरा हूँ, 


मैं रीति मुक्त का घनानन्द


मैं किसन भक्ति का मीरा हूँ। 


 


     ना रीतिकाल के लालबिहारी 


     ना श्रीपति, भूपति, सोमनाथ 


      ना भूषण, देव, ना मतीराम 


      ना चिन्तामणि ना रघुनाथ, 


 


मैं बैठा विकल पपीहा हूँ 


मैं रमता मस्त फकीरा हूँ, 


मैं रीतिमुक्त का घनानन्द 


मैं किसन भक्ति का मीरा हूँ।


 


      हे मन! तुम ना ठहरो 


      नभ के चन्द्र सितारों में 


      ना बसन्त की मादकता में 


      ना सावन के मन्द फुहारों में,


 


मेरा पतझड़ सा जीवन है


मैं टूटा हस्त लकीरा हूँ,


मैं रीतिमुक्त का घनानन्द 


मैं किसन भक्ति का मीरा हूँ। 


 


         ना पुष्प की पंखुड़ियों में 


         ना घनश्यामल अलकों में


         मेरा अनुराग छिपा हुआ है 


         प्रिय के चंचल पलकों में


 


नयनों में रूप उसी का है 


मैं अँधेरों का बसेरा हूँ,


मैं रीतिमुक्त का घनानन्द 


मैं किसन भक्ति का मीरा हूँ। 


 


 डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश'


महराजगंज, उत्तर प्रदेश। 


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