डॉ0 रामबली मिश्र

मेघ बरसता सावन बनकर


 


मेघ बरसता सावन बनकर।


मानव हँसता पावन बनकर।।


 


दिव्य प्रेम की हरित भूमि पर।


अति हर्षित मन नाच-नाच कर।।


 


जब होता मन में है सावन।


अन्तर्मन अति सहज लुभावन।।


 


मन मयूर है तभी थिरकता।


जब मनभावन दृश्य विचरता।।


 


मन के सावन को आने दो।


मंद सुगंध पवन बहने दो।।


 


अगर चाहिये दृश्य सुहाना।


मन को सुन्दर सहज बनाना।।


 


मन सावन जब बन जायेगा।


 मन का भ्रम तब मिट जायेगा।।


 


मन को सुन्दर भावों से भर।


संवेदन के तंतु स्वस्थ कर।।


 


मन की लहरों में मृदुता हो।


लहरों में प्रिय शीतलता हो।।


 


शीतलता में देवपुरुष हो।


मिटा हुआ कटु सकल कलुष हो।।


 


मन का सावन दिख जायेगा।


जब मन पावन बन जायेगा।।


 


 डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


 


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