गुरु पद सेवा जो नित करता,
उसका जीवन सफल है।
जो गुरु की करता नित निन्दा।
उसका जीवन विफल है।
गुरु सेवक बनता पुरुषार्थी,
फल देता पुरुषार्थ है।
गुरु आज्ञा को सिर पर रखना।
हो निर्द्वन्द्व सदा चलो।
गुरु से नेह लगाता जो भी,
परम प्रसाद मिले उसे।
गुरुद्रोही है प्रेत समाना,
कभी सुखी रहता नहीं।
जो गुरु में श्रद्धा रखता है,
ज्ञानी बन जाता वही।
गुरु को ही गोविन्द समझना।
भव सागर को पार कर।
गुरु के पग में चारों धामा।
गुरु सेवा अमृत सहज।
डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी
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