डॉ0 रामबली मिश्र

विश्व परिधि में घूमो नियमित


          मात्रा भार 13, 16


 


विश्व परिधि में भ्रमण कर,


अपना कर विस्तार निरंतर।


एक-एक को देखकर,


चलते रहना बनकर सुन्दर।


सबको अपना समझकर,


बढ़ते रहना बना धुरंधर।


करो कल्पना नित सुघर,


सदा घूमना बने मनोहर।


करना सबसे स्नेह,


अपने उर में सबको रखकर।


पावन भाव विचार से,


रहना सबका मन मोहित कर।


चेतन प्रभु सा नृत्य कर,


मोहित होना मेघ-श्याम पर ।


त्याग मंत्र का जाप कर,


चलो राम बनवासी बनकर।


सत्य अहिंसा प्रेम का,


कर प्रचार तुम बापू बनकर।


महा पुरुष की राह गह,


चलते रहना एक राह पर।


सदा विश्व पर ध्यान रख,


कर कल्याण दिखो शिवशंकर।


विश्व क्षितिज को चूम कर,


रहो केन्द्र पर घूम-घूमकर।


सदा पूछना हाल तुम,


सूरज चंदा तारा बनकर।


 


डॉ0रामबली मिश्र


हरिहरपुरी 


 


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