डॉ0 रामबली मिश्र

सुन्दर मन की होती शुभ गति।


पावन भावों की ही सद्गति। ।


 


जिसके मन में पाप भरा है।


उसकी होती निश्चित दुर्गति।।


 


उत्तम बनने की चाहत रख।


अगर चाहते हो सुन्दर गति।।


 


जिसने पाप किया जीवन भर।


उसकी होती नियत अधोगति।।


 


पुण्य करो आजीवन प्यारे।


पा जाओगे निश्चित शिव गति।।


 


पापी के काले चेहरे पर ।


करती नृत्य प्रेतिनी-दुर्गति।।


 


यदि संपति की इच्छा मन में।


कायम रखना सत चेतन मति।।


 


कुमति द्वार है गहन अपावन।


सुमति द्वार पर शिवमय सद्गति।।


 


वैर जो करता नहीं किसी से।


उसपर शिवाशीष की सहमति।।


 


शिवशंकर यदि बनना है तो।


करते रह पावनता से रति।।


 


सद्भावों का करो संचयन।


मीठा कोना रख सबके प्रति।।


 


सदा संतुलित जीवन जीना।


करते रहना कभी नहीं अति।।


 


बन प्रकाशमय राह दिखाना।


सकल लोक के हेतु बन अदिति।।


 


माफ़ करो सबकी गलती को।


देना सीखो सुन्दर अभिमति।।


 


मत कर ऐसा ,दु:ख दे खुद को।


हो सम्मान भाव सबके प्रति।


 


भले जगत हो मायावी यह।


मोड़ ब्रह्म की ओर जगत-गति।।


 


 :डॉ0रामबली मिश्र हरिहरपुरी 


 


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