डॉ0 रामबली मिश्र

गुणगायन हो नित माता का।


पूजन नित्य जन्मदाता का।।


 


पले कोख में नौ माहों तक।


मत कृतघ्न बनना माता का।।


 


जिला-खिलाकर बड़ा किया जो।


साथ निभाना प्रिय माता का।।


 


दु:ख सह जिसने पाला-पोषा।


रखना ख्याल सदा माता का।।


 


संस्कार में जिसने ढाला।


वन्दन करना उस माता का।


 


जिसने प्राण तुझे माना है।


प्रण कर रक्षा कर माता का।।


 


तेरी खातिर सुख को त्यागा।


बन सेवक उस सुखदाता का।।


 


कर उपवास तुझे जो पोषा।


कर सम्मान अन्नदाता का।।


 


मत करना अपमान भूलकर।


चरण गहो देवी माता का।।


 


आँखों से मत ओझल करना।


समझ धाम प्रिय घर माता का।।


 


मातृ धाम अतिशय शुभ पावन।


चारों धाम यही माता का।।


 


राम -कृष्णा को भले न पूजो।


कर अभिनन्दन प्रिय माता का।।


 


सीखो माँ की बातों से सब।


जननी ही असली गुरु-माता।।


 


जो जननी को सदा पूजता।


खुद ही पूजनीय बन जाता।।


 


जो जननी को करत उपेक्षित।


जन्म-जन्म तक वह दु:ख पाता।।


 


माँ से ही सबकुछ मिलता है।


माँश्री का आशीष दिलाता।।


 


माँ का कृपापात्र जो बनता।


उस पर सदा प्रसन्न विधाता।।


 


माँ की हँसी-खुशी से बनते।


बेटी-बेटे ज्ञानी-ज्ञाता।।


 


डॉ0 रामबली मिश्र


हरिहरपुरी 


 


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