डॉ०सम्पूर्णानंद मिश्र

कविता क्या तुमने जाना है


कवि के अथक परिश्रम को‌ पहचाना है


तुम ‌तक पहुंचने के लिए 


उसने ‌क्या- क्या नहीं खोया है


रातों की नींद ‌और दिनों ‌की‌ चैन


 उसने गंवाया है 


शब्दों के ‌मोती‌ लाने ‌हेतु


  मस्तिष्क के उदधि में 


  गोता‌ लगाया है 


तुम्हारे भावों को पाठकों के हृदय 


  तक सम्प्रेषित करने के लिए 


    अपने आंसुओं को 


       पानी की 


       तरह बहाया है 


    तुम केवल कवि के


     शब्दार्थ ‌नहीं हो 


न ही सीधा-सीधा भावार्थ हो


 अर्थों के महल को‌ 


खड़ा करने के लिए 


अपने अरमानों की


लाशों को भी उसने 


   दफ़नाया है 


तब जाकर कहीं अर्थों का


अमली ज़ामा ‌तुम्हें पहनाया है


तुम उसके आफ़ताबी चमक


     पर मत जाओ 


पत्थर से देव यात्रा की 


    इस सफ़र में अपनों से 


      शब्द-छेनियों की 


       कितनी मार खाया है 


     तब तुम्हारे वास्तविक रूप


          को पाया है


 


       डॉ०सम्पूर्णानंद मिश्र


        प्रयागराज फूलपुर


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