प्रियतम से श्रृंगार है, प्रभुवर का आभार।
अमर सुहागन मैं रहूँ, दाता करूँ पुकार।।
गौरा ने जब व्रत धरा, पाया शिव का प्रेम।
गठबंधन के सूत्र में, बँधा अलौकिक प्यार।।
करके व्रत हरितालिका, पाऊँ शुभआशीष।
शिव गौरा के साथ ही, गणपति आएँ द्वार।।
रहूँ निर्जला व्रत प्रभो, पूजूँ गौरा साथ।
सुख सौभाग्य मिले सहज , प्रेम बसे आधार।।
सोलह कर श्रृंगार मैं, प्रियतम पाऊँ नेह।
माँग बसे सिन्दूर यह, जीवन का यह सार।।
हाथ रचे मेंहदी सदा, रंग सजे शुभ लाल।
लाली अधरों पर सजे, मधुर सजे व्यवहार।।
मधु जीवन की आस ये, मिले सुखद वरदान।
भाव समर्पित ईश को, प्रभुवर हो स्वीकार।।
मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज
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