एस के कपूर श्री हंस

 हम आज कहाँ जा रहे हैं।


 


मैं एक मस्त अल्हड़ बाला, अति


आधुनिक कन्या हूँ।


मैं सुसंस्कृत, संस्कारी, सुकन्या नहीं


धन दौलत लिप्त धन्या हूँ।।


प्यार,धोखा, पैसा, ब्यूटी, ग्लैमर


ही मेरे रोज़ के शगल हैं।


शॉपिंग मॉल सैर सपाटे मेरे जीने के तो अंदाज़ ही अलग हैं।।


शादी विवाह के बंधन मेरे लिए कोई मायने रखते नहीं हैं।


कोई भी सामाजिक रस्मोरिवाज मुझे


रोक सकते नहीं हैं।।


फेरे,विदा,चूड़ा, कंगन, सिंदूर, मेहंदी यह शब्द मेरे लिए पुराने हैं।


मैं सुपर अल्ट्रा मॉडर्न लड़की मुझे तो


ऐशो आराम ही बस पाने हैं।।


बिन फेरे हम तेरे, हमारी इस नई हाई


सोसाइटी का चलन है।


पार्टी ड्रग मौज मस्ती, में ही हमारा


जीवन मरण है।।


बिंदास अंदाज़ नैन मटक्का ही रोज़


हमारी जिंदगी है।


इंस्टाग्राम फोटोज, चैट ,से ही होती हमारी बन्दगी है।।


जलेबी सी मीठी हूँ ,पर ज्यादा अंदर विष हाला है।


आवश्यकता होती तो ओढ़ लेती हूँ, भारतीयता का दुशाला है।।


बिन शादी के भी हम ,साथ साथ घर में रहते हैं।


हमारे उच्चवर्गीय समाज वाले, इस को ही ठीक कहते हैं।


यूँ ही नहीं हमारी सोच ,अति आधुनिक


कहलाती है।


आज़ाद खयाल इसको, लिव इन रिलेशनशिप बतलाती है।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...