पाने को थोड़ा सा
जीवन भर बहुत कुछ खोया करता है।
आदमी खिलौना मिट्टी का
पर फना होने से डरता है।
कर्म की चिन्ता नहीं अमर
होने की कामना करता है।।
मौत पर काबू नहीं और
बस नहीं है जिंदगी पर।
मिली इक छोटी सी जिंदगी
जाने कितना पाप भरता है।।
क्या होते जीवन के अर्थ ये
तो कभी सोचता नहीं है।
किसी गलत बात को भी
सामने से रोकता नहीं है।।
अपनी स्वार्थ की नाव पर ही
उसपर सदैव रहता है सवार ।
अपने कर्मों का फल स्वेच्छा
से कभी भी भोगता नहीं है।।
नफरत ईर्ष्या से ही सदा
सरोकार बनाये रखता है।
सहयोग परोपकार की बात
बस जबानी ही भरता है।।
जीवन को जीवन की भांति
कभी नहीं है वह जीता।
कुछथोड़ा पाने कोजीवन भर
बहुत कुछ खोया करता है।।
एस के कपूर श्री हंस
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें