मैं नहीं हम है जीत का पैमाना।
हम से मैं पर उतरते ही अभिमान
शुरू हो जाता है।
अहम से ही हर काम में व्यवधान
शुरू हो जाता है।।
आदमी जीने लगता है हनक की
नकली दुनिया में।
मैं से हम पर आते ही परिणाम
शुरू हो जाता है।।
यह गरूर ही तो हमारी सबसे
बड़ी रुकावट है।
ये हमारे चारों ओर बुन देता इक
नकली बनावट है।।
हमें तो भान ही नहीं रहता अपनी
असली ताकत का।
भूल जाते हैं कि विनम्रता ही तो
असली सजावट है।।
मिलनसारिता और सहयोग की
सोच को अपनाइये।
छुटकारा अपने दिमागी फितूर ओ
मोच से पाइये।।
दृढ़ता हो पर हठधर्मिता तो सबसे
बड़ा अवगुण है।
करना है कुछ बड़ा तो कामकाज
में लोच लेकर आईये।।
इस नफरत और जीने का यह
नज़रिया बदलना होगा।
आत्म निरीक्षण करके सही गलत
का अंतर समझना होगा।।
जीवन की दिशा और दशा निर्भर
ही हमारे दृष्टिकोण पर।
आत्म विश्वास से अपनी राह पर
आगे हमें बढ़ना होगा।।
एस के कपूर श्री हंस
बरेली।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें