एस के कपूर श्री हंस

जिनदगी मुझे खुद वापिस


बुलाने लगी है।।


 


हक़ीक़त खुद ही मुझे आईना


दिखाने लगी है।


कौन दोस्त कौन दुश्मन अब


बताने लगी है।।


सुन रहा हूँ जबसे दिल की


आवाज़ अपनी मैं।


हर तस्वीर आज साफ़अब नज़र


आने लगी है।।


 


जिंदगी तो वही पर धुन कोई नई


गुनगुनाने लगी है।।


गर्द साफ करी जहन से कि फिर


मुस्कारानें लगी है।


बस आस्तीन के छिपे दोस्तों को 


जरा सा क्या पहचाना।


तबियत अब अपनी खुद ही


सुधर जाने लगी है।।


 


आज हालात यूँ कि मुश्किल खुद


रास्ता बताने लगी है।


जिन्दगी आज कुछ आसान सी


नज़र आने लगी है।।


जरा सा मैंने दिल से अपने हर


नफरत को क्या निकाला।


हवा खुद ही मेरे चिरागों को


अब जलाने लगी है।।


 


उम्मीद रोशनी नई सी जिन्दगी में  


चमकाने लगी है।


सही गलत की समझ खूब मुझे 


अब आने लगी है।।


बहुत दूर नहीं गया था मैं किसी


गलत राहों पर।


आज जिन्दगी मुझे खुद वापिस


बुलाने लगी है ।।


 


एस के कपूर श्री हंस


बरेली।


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