देश है दूसरा हिंद जैसा कहाँ,
मिल न सकता कहीं घूमकर देखिए ।
चैन मिलता बहुत दूर सब कष्ट हों,
देश की भूमि को चूमकर देखिए ।।
जो हिमालय खड़ा शौर्य गाथा कहे,
वीर जां दे गए उच्च माथा रहे ।
ताज़गी तन-बदन व्याप्त होती तुरत,
देश की भक्ति में झूमकर देखिए ।
देश है दूसरा हिंद जैसा कहाँ,
मिल न सकता कहीं घूमकर देखिए ।।
धर्म दीवार बन राह रोकें नहीं ।
मान लो रीति जो कोई' टोकें नहीं ।
हर घड़े में बसा ईश का अंश है,
मानते लोग सब झूमकर देखिए ।
देश है दूसरा हिंद जैसा कहाँ,
मिल न सकता कहीं घूमकर देखिए ।।
पेड़ पत्थर नदी जीवधारी सभी ।
टूट सकता नहीं नात इनसे कभी ।
पुण्य मिलता सदा पाप का नाश हो,
मातु भारत चरण चूमकर देखिए ।
देश है दूसरा हिंद जैसा कहाँ,
मिल न सकता कहीं घूमकर देखिए ।।
गायत्री द्विवेदी 'कोमल'
फतेहपुर (उ.प्र.)
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