भारत की जान
न हिन्दू,न मुसलमान हूँ,
मैं तो बस इंसान हूँ।
इस अच्छे और सच्चे देश
मेंरे भारत का अभिमान हूँ।
स्वतंत्र भारत में रहने वाला
मैं ही भारत की जान हूँ।
बेडियो से जकड़े भारत को
जब गोरो ने कस कर भींचा था।
तब इस माता की आजादी को,
मैंने अपने लहू से सींचा था।
न डरता था मरने से मैं
न डरता था मैं भिड़ने से,
बस डरता था तो बिना कुछ
किये निठल्ले मरने से मैं।
मैं वही भगत,वही सुभाष और
वही अशफाक उल्लाह खान हूँ।
स्वतंत्र भारत का रहने वाला
मैं ही भारत की जान हूँ।
अब आतंकवाद की जड़ो ने
जमकर पैर अपने पसारे थे।
न जाने कितने मासूम बच्चे,
और निरपराध भारतीय मारे थे।
उन सबके प्रतिशोध का ज्वालामुखी,
मैं शिव के तांडव की पहचान हूँ।
आतंक के लिए काल का रूप,
मैं श्रीराम धनुष की तान हूँ।
स्वतंत्र भारत का रहने वाला,
मैं ही भारत की जान हूँ।
भेदभाव की जंजीरो को
अब तोड़ फेंकने आया हूँ,
आपसी सौहार्द और प्रेम भाव
का पावन सन्देश लाया हूँ।
मैं इस बढ़ते हुए भारत के रथ
का केशव सारथि महान हूँ।
विश्वगुरु मेरे देश का
मैं ही तो स्वाभिमान हूँ।
स्वतंत्र भारत का रहने वाला,
मैं ही भारत की जान हूँ।
गौरव सिंह घाणेराव
(अध्यापक,कवि,लेखक)
सुमेरपुर,राजस्थान
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