जयपाल धामेजा

आयी अलसुबह गलवान घाटी से, इक बुरी खबर ऐसी 


छा गयी हो संपूर्ण आसमां पे, घनघोर कालिमा हो जैसी 


अचानक आ गया हो मानो, इक बवंडर सा 


भविष्य हो गया वीराना, हो मानो कोई मरुस्थल सा 


 


दिख रही चहुँओर पगडंडीयां, वृक्षविहीन सी 


आयी हो दिल में मानो, आंधियों की सुनामी सी 


सावन की काली घटाएं, अब तो लग रही है ऐसी 


डंस रही हैं शरीर को वे, मानो हों जहरीली नागिन सी 


 


चुभ रहा है अक्स, अब तो आईना भी देखकर 


धंस रहा दिल की गहराईयों में, नागफनी के छूल बनकर 


बारिश की बूंदें तन पे, लग रही हैं ऐसे


आसमां से बरस रहा हो, गरम लावा हो जैसे 


 


भारत मां के लाल थे वो, रखते थे शेर का जिगर सभी 


हुंकार भरने से ही उनके, कांप जाती थी दुश्मनों की रूहें भी 


सरहदों पे तैनात थे वो, झंडा थामा था रणबाकुरों ने 


धोखे से मार गिराया उनको, पडौसी देश के कायरों ने 


 


अगले जनम में भी मैं तुमको ही पाऊं, जीवन तुम्हारे नाम हो 


किया गौरवान्वित तुमने मुझको, देकर बलिदान भारत मां को 


देकर सर्वोच्च बलिदान अपना, तन हो गया था खण्ड खण्ड 


धरती मां का कर्ज चुका पति मेरा, कर गया मां का आंचल अखण्ड 


कर गया मां का आंचल अखण्ड ।


 


जयपाल धामेजा


हरदा म. प्र.


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