हरी-भरी वसुंधरा को
देख कर मेरा वतन ,
मुस्कुरा रहा है ऐसे
फूल का कोई चमन ।
हर जवान देखता है
सीना तानकर यहां ,
आजाद,भगत,बोस ने
जन्म लिया है जहां ।
जमीं है मेरे प्यार की
जमीं है मेरे दुलार की,
महक ये बिखेरती
प्रेम,पावन,प्यार की ।
ये धरा भी देखो हमको
कैसे यूं लुभा रही ,
छा रही अमराई है
गंगा सुधा बरसा रही ।
इसका थोडा़ गुणगान करें
और इसका मान धरें ,
गीत भी अर्पण करें
और मन दर्पण करें ।
पा रहें हैं इससे मनभर
खुशियों का जहान हम ,
रक्त रंजित ना धरा हो
इसका धरें ध्यान हम ।
संजीवनी है ये धरा
मुस्कानों से भर दें घडा़,
इससे बढ़कर कुछ नहीं है
इस धरा पर है धरा ।
पाकर धरा पर हम ये जीवन
जीते ही तो जा रहे ,
शीर्ष पर फहरा तिरंगा
हिन्द जन मुस्का रहे ।
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'कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम
इन्दौर , 7869799232
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