कार्तिकेय त्रिपाठी राम

हरी-भरी वसुंधरा को 


देख कर मेरा वतन ,


मुस्कुरा रहा है ऐसे 


फूल का कोई चमन ।


हर जवान देखता है 


सीना तानकर यहां ,


आजाद,भगत,बोस ने


जन्म लिया है जहां ।


जमीं है मेरे प्यार की 


जमीं है मेरे दुलार की,


महक ये बिखेरती 


प्रेम,पावन,प्यार की ।


ये धरा भी देखो हमको 


कैसे यूं लुभा रही , 


छा रही अमराई है 


गंगा सुधा बरसा रही ।


इसका थोडा़ गुणगान करें


और इसका मान धरें ,


गीत भी अर्पण करें 


और मन दर्पण करें ।


पा रहें हैं इससे मनभर 


खुशियों का जहान हम ,


रक्त रंजित ना धरा हो 


इसका धरें ध्यान हम ।


संजीवनी है ये धरा 


मुस्कानों से भर दें घडा़,


इससे बढ़कर कुछ नहीं है


इस धरा पर है धरा ।


पाकर धरा पर हम ये जीवन


जीते ही तो जा रहे ,


शीर्ष पर फहरा तिरंगा 


हिन्द जन मुस्का रहे ।


~~~~~~~~~~~ 


'कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम


इन्दौर , 7869799232


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