काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार राजहंस मिश्र


माता:- श्रीमती जमुना देवी


पिता:- श्री आशाराम मिश्र


पता:-बाजार वार्ड धौरहरा खीरी-262723


शिक्षा- बी.एस. सी, डी एल एड, कंप्यूटर डिप्लोमा(CCC,ADCE), योग में डिप्लोमा।


कार्य: प्राइवेट स्कूल में शिक्षक , दिल्ली की संस्था 'योगा करो' में योग शिक्षक।


मो0 :- 9838992915, 8419882915


E-mail:- rajhans2915@gmail.com


rajkattyan111@gmail.com


 


कविता -1


झरना ,पत्थरों से छूट के बना है।


दुनिया मे जो भी बना है, टूट के बना है।।


 


वक़्त ने तोड़ दिया था,कभी जिस डाली को


वहाँ से कोपलें ,देखो हजार फूटीं हैं।


फूल ने रोजगार फिर से दिया माली को


बन के उम्मीद की ,देखो बाहर छूटीं हैं।।


 


पत्तो मुस्कुराओ,....... कुंभलाना मना है


दुनिया के में जो भी बना है ,टूट के बना है।।


गर्दिशें तोड़ देंगी तुझको, टूट जाने दे।


जो रूठता है तुझसे, उसको रुठ जाने दे।।


तेरा जब वक्त आये ,सबको मना लेना तू।


फिर टूटने के लिए, ख्वाब सजा लेना तू।।


 


मग़र......... मंजिल तक पहुचने से पहले, अलसाना........ मना है।


दुनिया में जो भी बना है टूट के बना है।।


 


कविता-2


सिक्कों की मोहताज हमेशा रही जिन्दगी मगर....।


हम जमीर वालो से जमीर बेचा न गया।।


गलत को सही कभी नही कहा 


झूठ हमसे तो बिल्कुल देखा न गया।।


कितने दरिया थे निकले डुबाने मगर....


मुसाफिर पागल सा था उनसे रोका न गया।।


लाख जंजीरे बांधी गयी पांव में।


सबने कसके लगाया नमक घाव में।।


 


जलजालती चुभन आँख में रह गयी।


टीस दिल मे जो थी, कान में कह गयी..


मतलबी लोगो के दिमाग से धोखा न गया।


मुसाफ़िर पागल था उनसे रोका न गया।।


 


कविता-3


हे मातृ तुल्य,हे सर्वश्रेष्ठ, 


हे राष्ट्र तुम्हारी जय होवे।


हम जीवन का क्षण-क्षण दें दें न कभी तुम्हारी क्षय होवे।।


 


हे मातृ भूमि, हे पूज्य भूमि,


मस्तक पर ऐसे राजो तुम।


ज्यों स्वर्ण मुकुट हो राजा का 


इस मूढ़ पे ऐसे साजो तुम।


 


हैं कर्जदार हम सब तेरे....।


तेरा तुझको सब अर्पण है।।


यदि राष्ट्र हेतु जीवन आये


तो प्राणों का भी तर्पण है।।


 


हे सिंह सदा तुम सिंह रहो....


ना झुको ....प्रसिद्धि नित नय होवे।


हे मातृ तुल्य, हे सर्वश्रेष्ठ,


हे राष्ट्र तुम्हारी जय होवे।।


 


 


कविता-4


"हौसला"


अभी गिरते हैं तो गिरने दो, के चलना सीख जाएंगे।


 मुश्किलें हार जाएंगी, इरादे जीत जाएंगे।।


 


सबर रख, तपिस झेल, फिर चमकेगा एक दिन


तेरी उम्मीद का सूरज, निकलेगा एक दिन


परिन्दे डगमगायें तो , उड़ना सीख जाएंगे।


मुश्किलें हार जाएंगी, इरादे जीत जाएंगे।।


 


पसीना डाल धरती पर, और बंजर हरा कर दे


तू लोहे को पिघला कर, सोने सा खरा कर दे


इन हाथों में , नसीबों की , लकीरें खींच लाएंगे।


मुश्किलें हार जाएंगी, इरादे जीत जाएंगे।।


 


कविता-5


मिलो तो बताऊं दर्द कितने बे-हिसाब रखे हैं


तकिए के नीचे अब भी कुछ अधूरे से ख्वाब रखे हैं।


तारीखें, वक्त, इंतजार ,सबर सब लबालब भरा है.......


सहेज कर मैंने तुम्हारे हिस्से के गुलाब रखे हैं।।


 


के रोज शाम गुज़र जाती है ऐसे तन्हा


तेरी तस्वीर मिले तो भी बात बन जाये।


तेरे दामन मे सिमट जाउं भंवरा बन के


काश ऐसी कोई छोटी सी रात बन जाये।


तुम आये ....हाथ थामा और छोड़ा ही नही


आह.... कैसे अजीब ये पागल से ख्वाब रखे हैं।


सहेज कर मैंने तुम्हारे हिस्से के गुलाब रखे हैं।।


 


 


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