काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार शमशेर सिंह जलंधरा


उपनाम :- "टेंपो" 


पिता का नाम :- श्री आदराम


माता का नाम :- श्रीमती संतरा देवी 


पत्नी का नाम :- एकता रानी 


जन्म :- 07 - 06 - 83 


स्थाई पता :- गांव ढाणी कुम्हारान , तहसील हांसी , जिला हिसार , हरियाणा ।


शिक्षा :- +12 


उपलब्धियां :- कई प्रतिष्ठित मंच पर कविता पाठ ।


कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविता एवं गजल प्रकाशित ।


सम्मान :- विशेष फ़रवरी 2005 में हिसार की प्रतिष्ठित काव्य संस्था प्रेरणा परिवार के द्वारा ।


 


जनवरी 2006 को गुरु जंभेश्वर युनियर्सिटी में हरियाणा साहित्य अकादमी के द्वारा सम्मानित ।


 


सितम्बर 2008 में सोनीपत के गांव भावड में हरियाणा साहित्य की उर्दू अकादमी द्वारा सम्मानित


 


अगस्त 2010 में भारत माता मंदिर हिसार में हरियाणा के राज्य कवि श्री उदय भानु "हंस" के हाथो हरिद्वार की संस्था द्वारा सम्मानित ।


 


मध्य प्रदेश के लेखक मंच बैतूल द्वारा प्रशस्ति पत्र ।


 


इंद्रधनुष द्वारा प्रशस्ति पत्र ।


 


इसी तरह की काफी संस्थाओं द्वारा प्रशस्ति पत्र और सम्मान।


 


2014 में राव तुलाराम पुस्तकालय ढाना , (हांसी) द्वारा सम्मानित ।


 


करीब 1000 रचनाओं का संकलन ।


कविताएं , गजलें , दोहा , लघु कथाओं में लेखन ।


 


2000 , 11 , 12 , 13 में तक साहित्य प्रवाह मासिक पत्रिका उप संपादक बतौर संपादन ।


 


लोकल एक्सप्रेस उकलाना में 1 वर्ष साहित्य पेज का संपादन ।


 


रचनाएं 5 विशेष रचनाएं - 


 


*दलीलें*(1)


 


अवैध रूप से ,


करवाई गई लिंग जांच से ,


गर्भ में ,


बेटी होने की सुनते ही ,


तमरा उठती हैं आंखें ,


सब लोगों की ।


एक दूसरे से मशविरा होता है ,


गर्भपात करवाया जाए ,


उनके लिए तो गर्भपात होगा ,


पर मेरी तो हत्या है ।


मैं ,


कौन से न्यायालय का दरवाजा खटखटाऊं ,


मां की अदालत के सिवा ,


टूट जाती है आस ,


जीवन की ।


जहां मां भी ,


शामिल हो जाती है ,


उन सभी लोगों में ,


और खड़ी हो जाती है ,


गर्भपात के पक्ष में ।


मरना तय हो जाता है ,


जिस दर पर ,


तब दम तोड़ जाती हैं ,


तमाम तरह की दलीलें ।


 


*न्यारे न्यारे* (2)


 


कितना अच्छा था ,


इस दीवार से पहले का आंगन ,


मां उठती थी अलसुबह ,


पीसती चक्की ,


और चाची देती थी झाड़ू ,


और दोनों के काम से उत्पन्न ध्वनि ,


कितनी घुल मिल जाती थी ,


एक दूसरे में ।


पर अब जब से ,


पडने लगे हैं बंटवारे ,


उठने लगी है आंगन में दीवारें ,


वह मदमस्त मधुर आवाज सुनाई नहीं देती ,


हो गए हैं सब न्यारे न्यारे ,


अब अपना ही राग अलापे है ,


अलग-अलग सारे ,


हो गए सब न्यारे न्यारे ।


 


*याद रहे* (3)


 


सफलता का मूल ,


प्रयास का ज्वलंतदीप , 


टूटी आशा जो , 


मंजिल के समीप ।


फिर असफलता ही मिलेगी ,


पर वास्तव में ,


वह होती है सफलता ,


सीख लेने की ।


अपने आप को सुदृढ़ बनाने की ,


हौसले को जकड़ने की ,


मंजिल पाने की जिद को पकड़ने की ,


याद रहे कि फूल ,


कांटों में महफूज रहा करते हैं ।


अड़चनों बाद मिली सफलता ,


देती है मनमाफिक मिठास ।


सरलता से मिले सफलता तो ,


कम होती है खुशी ,


सुस्ती बढ़ती है यकीनन ,


फिर मन नहीं चाहता मेहनत करना ,


और फिर करनी पड़ती है ,


आलस से संधि ,


असफलताओं से होना पड़ता है संतुष्ट ।


 


*बना रहे प्रेम* (4) 


 


रिश्तो की नाजुकता ,


गुस्से की अग्नि से ,


मुरझा सकती है ।


इसलिए ,


हे प्रिय ,


समझा करो भावनाएं ,


किया करो समझौता ,


अपने मन और मस्तिष्क से ,


मिलाया करो अपने विचार ,


अपने प्रियवर से ,


ताकि बना रहे प्रेम ,


दोनों के दरमियां ,


मनमुटाव बाद भी ।


 


*कविताएं कोरी कल्पनाएं नहीं होती* (5)


 


कविताएं कोरी कल्पनाएं नहीं होती ,


उनमें भरा होता है विश्वास ,


टूटे प्यार के फिर से मिलने की आस ,


भावनाओं का ऐसा सागर ,


जिसकी गहराई मापना ,


आज भी नामुमकिन के समकक्ष है ।


भाई बहन मां बाप का प्यार ,


खुशियों से चहकने वाला परिवार ,


एक वह लड़की जिसके सपने ,


छुड़वा देते हैं अपने ,


उसके त्याग की परिभाषा ,


ब्रह्मांड की अन्य किसी चीज से,


मेल नहीं खाती ,


कविताएं कोरी कल्पनाएं नहीं होती ,


इनमें छिपा होता है ,


किसी का प्यार ,


खट्टी मीठी तकरार ,


किसी का आक्रोश ,


किसी का जोश ,


इंकलाब की शक्ति ,


मन की भक्ति ,


वरना यूं ही नहीं बनती कहावत ,


जहां न पहुंचे रवि ,


वहां पहुंचे कवि ।


 


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