काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार लवी सिंह 


असिस्टेंट प्रोफ़ेसर 


शिक्षा विभाग 


इनवर्टीस विश्वविद्यालय


 


समाज सेविका


अध्यक्ष 


उम्मीद एक नया सवेरा वेल्फेयर सोसाइटी 


 


यूथ को-ऑर्डिनेटर 


बरेली


मानव उत्थान सेवा समिति 


 


पता:-


ग्राम- चराई डांडी 


पो- मुंडिया नबी बक्श 


तह- बहेड़ी 


जि- बरेली 


उत्तर प्रदेश 


पिन कोड- 243201


 


मेरी कलम से....


 


कविता 1-


कुछ हसेंगे तुम पर,


और कुछ दर्द बढ़ाएँगे,


ये बोलकर कि वो तुम्हें


ढाँढस बंधाएंगे,


कुरेदेंगे तुम्हारे ज़ख्मों को,


शब्दों के तीखे बाणो से,


अपने दो घड़ियाली आँसू दिखाकर,


तुमको बहुत रुलायेंगे।


पूछेंगे फिर वो अश्क तुम्हारे,


और तुम्हें झूठी दिलासा देकर


अहसानमंद कर जाएंगे।


 


2-


अपने ही अक्सर हार का कारण बन जाते हैं, 


कभी न भरने वाले घाव वो तुमको दे जाते हैं।


 


यूँ तो रखते हैं कंधे पर वो हाथ तुम्हारे,


और पीछे से पीठ पर चाकू भी,वो ही चलाते हैं।


 


दुनिया के रंज-ओ-गम से तो उभर आओगे,


अपनों के दिए दर्द हर पल रुलाते हैं।


 


3-


कैसी ये उदासी है.....


होली के रंग भी सब बेरंग से हैं 


जज़्बात मेरे कुछ बेढंग से हैं, 


यूँ तो दुनिया की भीड़ में हूँ 


फिर भी दिलो-दिमाग में चल रहे....


तेरे खयाल किसी मैदान-ए-जंग से हैं।


तेरे चले जाने का गम नहीं मुझको 


चूँकि तेरी खुशी में ही मेरी खुशी है,


हाँ अफसोस है तुझे खो देने का.... 


दुख है अब तन्हा रहने का,


पर...सुकून.. कि तू खुश है। 


 


4-


रिश्तों को बनाना जितना आसान है,


निभाना उतना ही कठिन,


चूंकि बनाने में बस लम्हा लगता है


और निभाने में पूरी उम्र बीत जाती है।


 


पर........


 


अगर रिश्ता बनाया है,तो निभाना सीखो।


वक़्त चाहते हो,तो वक़्त देना सीखो।


रिश्तों में आयी दरार को मिटाना सीखो।


माना कि गम बहुत हैं,पर जीत इसी में है,


कि गम में भी मुस्कुराना सीखो।


 


5-


अब तू ही बता......


कि तुझसे मोहब्बत करुँ भी तो कैसे करुँ 


कोई तेरा बन गया,तू भी उसी का हो गया 


मैं तेरी बन के रहूँ भी तो कैसे रहूँ l


अब तू ही बता......


कि तेरे साथ चलूँ भी तो कैसे चलूँ 


तू ने हाथ किसी का थाम के रास्ता बदल लिया


मैं सफ़र को पूरा करुँ भी तो कैसे करूँ।


अब तू ही बता......


कि तेरे संग ज़िन्दगी जियुँ भी तो कैसे जियुँ 


तू ने साँसों को अपनी किसी के नाम कर दिया 


मैं जिंदा रहूँ भी तो कैसे रहूँ l 


अब तू ही बता.......


कि तुझे छोड़कर चली भी जाऊँ अगर 


तो खुदकशी करना गुनाह है मेरे मज़हब में 


मैं मरूं भी तो कैसे मरूं।


 


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