माता:- स्व० श्रीमती मनोरमा मिश्रा
पिता:- श्रीमान रामाधार मिश्रा (पुत्र स्वतन्त्रता संग्राम सैनानी)
निवास :- धौरहरा ,लखीमपुर खीरी ,उत्तर प्रदेश
शिक्षा :- एम ए (हिन्दी साहित्य) कम्प्यूटर डिप्लोमा ।
सम्प्रति:- अध्यापिका
सम्मान/ पुरस्कार :- साहित्य साधक सम्मान, विभिन्न साहित्यिक समूहों से प्राप्त प्रमाण पत्र , कई ई-प्रमाण पत्र और खेलकूद प्रतियोगिता सम्मान पत्र ।
रचनाएं-: काव्य रंगोली पत्रिका,साझा संकलन ,कई ई-बुक व पत्रिका,ब्लागर,समाचार पत्र में प्रकाशित रचनाएं ।
रचनाएं-:
(१)
शीर्षक- कुछ भी असम्भव नहीं
विधा- कविता
तुम चाहो तो सब सम्भव है,उज्जवल होगा भारत का कल ।
यदि करने पर तुम आ जाओ ।
यदि साहस से तुम डट जाओ ।।
मंजिल पर अपनी ध्यान रखो ।
तुम अडिग हो आगे बढ जाओ ।।
तुम ठान लो जो कर सकते हो ।
जिद साहस से बढ़ सकते हो ।।
इस धरा पे जो भी क्रिया बनीं ।
वो सभी क्रिया कर सकते हो ।।
यदि इतना कहा मेरा मानों ।
सब कुछ सम्भव हो जायेगा ।।
कुछ भी असम्भव नहीं धरा पर ।
यह भी साबित हो जायेगा ।।
तुम मानव हो अभिमान करो ।
इस जीवन का सम्मान करो ।।
हर ज्ञान दिया ईश्वर ने तुम्हें ।
युग निर्माता यह भान करो ।।
उठो ! बढ़ो ! भारत के कल ।
तुमसे उज्जवल है हर इक पल ।।
युग को बदलो निर्माण करो ।
बन उठो हर इक प्रश्नों का हल ।।
तुम चाहो तो सब सम्भव है,उज्जवल होगा भारत का कल ।
(२)
शीर्षक-: सावन
विधा-: गीत
सावन आया सावन आया झूम झूम के ।
मन ये मेरा नाचे सखी री घूम घूम के ।।
आया रे सावन आया रे आया रे सावन आया रे ।
मोरा मनभावन आया रे मोरा मनभावन आया रे ।।
सावन आया सावन आया.......
धूम मची है बागों में ऐसे ।
शिव शिवा झूल रहे झूलें हों जैसे ।।
प्रेम ऋतु प्रेम ऋतु बरसे झूम झूम के ।
मन ये मेरा नाचे सखी री घूम घूम के।।१।।
मधुबन में भी सखी झूले पडे हैं ।
श्याम श्यामा की प्यारी जोड़ी सजे है ।।
बंशी बाजे बाजे रे बाजे जाये तन झूम रे ।
मन ये मेरा नाचे सखी री घूम घूम के ।।२।।
शिव की करो पूजा गौरा संग रे ।
सावन में रे करो पावन अंग रे ।।
रिमझिम गिरें फुहारें शिव के चरण चीन के ।।
मन ये मेरा नाचे सखी री घूम घूम के ।।३।।
आया रे सावन आया रे आया रे सावन आया रे ।।
(३)
शीर्षक-: आगोश
विधा-: गीत
अपने आगोश मेरी माँ सदा भर कर मुझे रखना ।
छवि मैं हूँ तुम्हारी माँ ना खुद ऱसे कर जुदा रखना ।।
सृजन कर्ता तुम्हीं मेरी
तुम्हीं से रूप पाया है ।
तपी हो तुम मेरी खातिर
तभी ये धूप छाया है ।।
समाकर खुद में माँ मुझको मुझे जग से बचा रखना ।
अपने आगोश मेरी माँ सदा भर कर मुझे रखना ।।
समाती हूँ आलिंगन में
खुद को महफूज पाती हूँ ।
दिया रोशन तुम्हीं से माँ
मैं इक मात्र बाती हूँ ।।
तुम्हारी छाया हूँ मैं माँ सजाकर के मुझे रखना ।
अपने आगोश मेरी माँ सदा भर कर मुझे रखना ।।
लेके दुख दर्द सब मेरे
हर इक गम से बचाती थी ।
नहीं आती थी जब निंदिया
मुझे लोरी सुनातीं थी ।।
गया हो आसमाँ लेकर मेरी लोरी बचा रखना ।।
अपने आगोश मेरी माँ सदा भर कर मुझे रखना ।
छवि मैं हूँ तुम्हारी माँ ना खुद से कर जुदा रखना ।।
(४)
शीर्षक-: *एक बात जमाने से प्रियतम, गर तुम बोलो तो पूँछ ही लूँ ।
विधा-: गीत
इक बात जमाने से प्रियतम, यदि तुम बोलो तो पूछ ही लूँ ।
क्यों जलती है पगली दुनिया.....
जब हम और तुम मिल जाते है ।
जब प्रेम में होते है हम तुम ....
क्यों जल सब के दिल जाते है ??
एक बात जमाने से प्रियतम, यदि तुम बोलो तो पूछ ही लूँ ।।
हर सम्भव करते हैं प्रयास....
खो जायें हम इक दूजे में ।
क्या खो बैठेगी ये दुनिया.....
यदि मिल जायें इक दूजे में ।।
एक बात जमाने से प्रियतम, यदि तुम बोलो तो पूछ ही लूँ ।
यदि मिले नहीं इस जीवन...
हम जीते जी मर जायेंगे ।
इक जन्म नहीं काफी होगा ...
मन घट न कभी भर पायेंगे ।।
एक बात जमाने से प्रियतम, गर तुम बोलो तो पूछ ही लूँ ।
पर एक प्रश्न फिर उठता है
दुनिया से अलग नहीं हम भी।
दुनिया है तो खुशियाँ भी हैं
चलते हैं साथ सदा गम भी।
इक बात जमाने से प्रियतम, यदि तुम बोलो तो पूछ ही लूँ।
(५)
शीर्षक-: मजदूर
कमाने गये थे जो जीविका चलाने को ।
उनको क्या थी खबर मुसीबत आन पडे़गी ।।
थे सफर पर निकले जिस आजीविका की खातिर ।
कौन जानता था आफत में जान पडेगी ।।
उनको क्या थी खबर मुसीबत आन पडेगी ।।
छोडकर गाँव मोहल्ले गलियाँ अपनी ।
दूर देश को निकल पड़े थे ।।
दो जून की रोटी मिल जाये सभी को ।
सब छोड़कर घर अपने फुटपाथ पड़े थे ।।
प्रवासी बने आजीविका खातिर ये सोचकर ।
कि चादर आसमाँ की बनेगी ।।
उनको क्या थी खबर मुसीबत आन पडेगी ।।
अपनों को छोडकर चले थे....
आजीविका के लिए प्रवास पर ।
रिक्शा खींचकर मजदूरी करके.... चला रहे थे जिन्दगी इस आस पर ।।
मेहनत करके जो कमा पायेंगे...
घर परिवार की उससे खुशियाँ लायेंगे ।
याद उन्हें भी तो घर की आती है.....
मजदूर है तो क्या.....!!
घर का निवाला घर की रोटी उन्हें भी घर बुलाती है ।।
घर लौटने की उनकी चाह ।
चेहरे की मुस्कान बनेगी ।।
उनको क्या थी खबर मुसीबत आन पडेगी ।।
महामारी ने सबको झकझोर दिया है ।
रूख जिन्दगी का जाने किधर मोड़ दिया है ।।
साथ हों अपने और जिन्दगी बचे इस खातिर ।
जिन्दा रहने को सबने शहर छोड दिया है ।।
मजदूर है वो मजबूरी ओढ़ रहे है ।
नंगे पाँव जिम्मेदारी का बोझ उठाये .....
चिटकी धूप में मीलों दौड़ रहे है ।।
पाँवों के छालों ने सबको चूर किया है ।
मीलों की दूरी तय करने पर मजबूर किया है ।।
शायद यही था परिणाम जो आजीविका के लिए था ।
कौन जानता था कि इक रोज ये जिन्दगी ......
यूँ विवशता में राह पर आ बेजान पडेगी ।।
उनको क्या थी खबर मुसीबत आन पडेगी ।।
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