काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार बाबा बैद्यनाथ झा 

 



2.पिता--स्मॄति शेष श्री सूर्य मणि झा 


3.माता- " श्रीमती गौरी देवी 


4.पत्नी--- डॉ.हीरा प्रियदर्शिनी(बी ए एम एस, ए एम)


5.जन्म तिथि- 3 अगस्त,1955 (श्रावण धवल चतुर्दशी)


6.जन्म स्थान- कचहरी बलुआ,भाया- बनैली,जिला- पूर्णियाँ (बिहार) 854201


7. वर्तमान स्थायी पता --हनुमान नगर,श्रीनगर हाता,पूर्णियाँ(बिहार)854301


8.शिक्षा--एम ए (द्वय) - हिन्दी (स्वर्ण पदक प्राप्त) + दर्शन शास्त्र,CAIIB, होमियोपैथ


9.लेखन की विधाएँ-- *हिन्दी एवं मैथिली* भाषाओं में-- *गीत,ग़ज़ल,लघुकथा,कहानी,उपन्यास,नाटकादि के अतिरिक्त लगभग 100 प्रकार के छन्दों की सर्जना*


10.कृतित्व--


(क)प्रकाशित पुस्तकें-


"बाबा की कुण्डलियाँ"(270 कुण्डलियों का संकलन)2018


"जाने-अनजाने न देख( 104 ग़ज़लों का संग्रह)2018,  


"निशानी है अभी बाकी"(105 ग़ज़्लों का संग्रह)-2019        


"पढ़ें प्रतिदिन कुण्डलियाँ"(300 कुण्डलियों का संग्रह)2019 


"ईमान यहाँ बिकता"(100 ग़ज़लों का संग्रह)--2019


"कुण्डलिया से प्रीत"(300 कुण्डलियाँ)2020


'पहरा इमानपर' (मैथिली गजल संग्रह), '-1989 


             


(ख)अप्रकाशित पुस्तकें--


"बाबा दोहा-सप्तशती"(दोहा संकलन)(प्रकाशनाधीन-अन्तिम चरण में )  


*छन्द ही ब्रह्म सहोदर"(विविध छन्द) प्रेस में,इसके अतिरिक्त पाँच-छः पुस्तकें *26 साझा संकलन*


(ग)सम्पादन-- *मिथिला सौरभ* , *त्रिवेणी*, *भारती मंडन* आदि


 (घ)दर्जनों स्तरीय पत्रिकाओं में शताधिक रचनाएँ प्रकाशित


 


11."दोहा शिरोमणि", " दोहा रत्न ", " हाइकू छंद शिरोमणि","साहित्य सम्राट""साहित्य भूषण","साहित्य साधक" "साहित्य गौरव","अटल काव्प-सम्मान". "प्रणयी साहित्य-सम्मान,2019"."साहित्य ऋषि","जनचेतना राष्ट्र-मणि सम्मान"."गणतन्त्र साहित्य गौरव सम्मान"(मगसम),"समीक्षा साधक","श्रेष्ठ संचालक"


आदि की मानद उपाधियों से अलंकृत ,"विदेह मिथिला रत्न", "विद्यापति स्मॄति सम्मान","हरिवंशराय बच्चन स्मृति सम्मान";शतकवीर सम्मान,मगसम लेखन प्रतिभा सम्मान,"गजेन्द्र नारायण सिंह सम्मान"(नेपाल),प्रसिद्ध समाजसेवी "कमला प्रसाद खिरहरि स्मृति सम्मान" ,"आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री स्मृति सम्मान,'जाने अनजाने न देख'(ग़ज़ल संग्रह) पर "कृष्णदेव चौधरी रजतस्मृति सम्मान,'बाबा की कुण्डलियाँ"(कुण्डलिया-संग्रह) पर-"काव्यश्री सम्मान, "वाग्देवी साहित्य-सम्मान"."श्रेष्ठ साहित्यकार-सम्मान,२०२०" आदि १०० से अधिक सम्मान।


 


12.*अन्य उपलब्धियाँ* --


*आकाशवाणी पटना,दरभंगा एवं पूर्णियाँ से पचासाधिक बार- काव्यपाठ एवं रेडियो नाटकों में अभिनय*


*अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा आयोजित कवि-सम्मेलनों/मुशायरों में संचालन,अध्यक्षता,मुख्य अतिथि तथा काव्यपाठ।*


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13. *सम्प्रति* --हनुमान नगर,श्री नगर हाता, पूर्णियाँ (बिहार) 854301 


14+15..मोबाईल नम्बर- 7543874127 (वाट्सअप सहित)


16.ईमेल--jhababa55@yahoo.com


jhababa9431@gmail.com


 


 


         आल्हा/वीर छन्द


         


 


अति व्याकुल हो पाक दौड़ता 


 कहीं न मिलता उसको ठौर 


गदहा जैसा रेंक रहा है 


खूब लगाता है वह जोर 


भीख माँगकर खाता है वह 


              नहीं डालता कोई अन्न 


दुष्ट चाल भी नहीं छोड़ता 


              इसीलिए है आज विपन्न 


 


मुट्ठी भर आतंकी पाले 


             करता है खुद को बर्बाद 


पाक त्रस्त है उन दुष्टों से                                                   


            आती है अब नानी याद 


भारत उसका मित्र देश था 


            ठान लिया है इससे बैर 


पूरी दुनिया जान गयी है 


           उसकी कहीं नहीं है ख़ैर 


 


राष्ट्र संघ में चिल्लाने पर 


          नहीं किसी का जाता ध्यान 


उसको केवल नफ़रत मिलती 


         बेच चुका है वह ईमान 


वह कश्मीरी माला लेकर


         करता रहता उसपर जाप 


मगर दाल अब नहीं गलेगी 


         भारत तो है उसका बाप   


                     


            आती है अब नानी याद 


भारत उसका मित्र देश था 


            ठान लिया है इससे बैर 


पूरी दुनिया जान गयी है 


           उसकी कहीं नहीं है ख़ैर 


 


राष्ट्र संघ में चिल्लाने पर 


          नहीं किसी का जाता ध्यान 


उसको केवल नफ़रत मिलती 


         बेच चुका है वह ईमान 


वह कश्मीरी माला लेकर


         करता रहता उसपर जाप 


मगर दाल अब नहीं गलेगी 


         भारत तो है उसका बाप


 


                                                       


 


                            


सैनिक*                


"मत्तगयन्द सवैया"


        


 


 


सैनिक युद्ध करे जब भी तब,               


पीठ दिखा कर जा न सकेगा।


दुश्मन-वक्ष किये बिन घायल,                 


चैन कभी वह पा न सकेगा।


जीत बिना वह प्राण बचाकर,


लौट कभी घर आ न सकेगा।


ढोल बजे बिन हाथ उठाकर गान कभी वह गा न सकेगा।


 


 


                         


               


                            


 "आल्हा छन्द/वीर रस"


मात्रिक छन्द-16,15 पर यति


             


 


भारत के हम वीर सिपाही, वतन हमारा हिन्दुस्तान


दुश्मन को हम मार भगाएँ, जबतक शेष रहेगी जान


 


देख हमारी ताकत इतनी ,होते दुश्मन के मुख म्लान


तबतक भारत रहे सुरक्षित,जबतक सारे वीर जवान


 


विश्व गुरू भारत कहलाता, बाँट रहा सबको है ज्ञान


सोने की चिड़िया कहलाता,सचमुच अपना देश महान


 


गीदड़ धमकाए शेरों को, समझो हैं वे सब नादान


भारत का बच्चा-बच्चा है,वीर बहादुर सिंह समान


 


अमन शान्ति के परम पुजारी,यद्यपि हम होते श्रीमान् 


नहीं भीरुता इसको समझें,हम हैं धीर वीर बलवान


 


देखेगा जो गिद्ध नजर से, उसपर जारी यह फरमान


अब कश्मीर अगर माँगोगे, छीनेंगे हम पाकिस्तान


 


 


                        


                


आल्हा/वीर छन्द (मात्रिक छन्द)


               


      


 


                         1


सता रहा चमगादड़ चैना,भारतीय सैनिक हैं क्रुद्ध।


उसकी मंशा दीख रही है,करना चाह रहा वह युद्ध।।


बासठ का अब गया जमाना,अब है भारत अति बलवान।


प्रत्युत्तर अब मिल जाएगा,मत दिखलाओ अब तुम शान।।


 


                       2


एक लोमड़ी घूर रही है,शेरों को देखो दिन रात।


जब भी अवसर उसको मिलता,करता रहता है आघात।।


कोरोना फैलाकर जग में,करे उपद्रव पापी चीन।


पहले से हड़पी जो धरती,अब तुमसे हम लेंगे छीन।।


 


 


                   


        आल्हा/वीर छन्द


    


सरहद पर जो बनी हुई है, 


 चन्द महीने से तकरार।


अपने सैनिक डटे हुए हैं, 


               सजग हमारी है सरकार।।


आँख उठाकर जो देखेगा, 


              उसकी देंगे आँखें फोड़।


कदम बढ़ा यदि इस धरती पर, 


              टाँगे देंगे उसकी तोड़।। 


             


 


कभी भूल से भी माँगोगे,


             हमसे तुम जन्नत कश्मीर  


कदम बढ़ाया इधर कभी तो, 


            पैर खींच कर देंगे चीर।। 


सदियों से भारत का हिस्सा, 


              बना हुआ है यह भूभाग।


सपने में भी सोच लिया तो, 


            देंगे लगा मुल्क में आग।।


 


लालच बुरी बला होता है, 


            स्वप्न देखना दो तुम छोड़। 


एटम बम की धमकी मत दो, 


            यहाँ बना है सबका तोड़।।


सारी दुनिया थू थू करती,


           सुनो गालियाँ पाकिस्तान।


ठान लिया है हमलोगों ने, 


           बदला लेगा हिन्दुस्तान।।


 


 


                       


विषय-स्वदेश/स्वदेशी


  दोहा छन्द


 बाबा बैद्यनाथ झा


 


रहें विदेशी वस्तु से, हमसब काफी दूर।


बढ़े स्वदेशी भावना, अब मन में भरपूर।।


 


आज अधिकतर वस्तुएँ, भिजवाता है चीन।


रखकर भाव स्वदेश का,यह हक़ लें हम छीन।।


 


रहते आप स्वदेश में, है जिसका अभिमान।


नहीं खरीदें चीन का, अब कोई सामान।।


   


 रखना भाव स्वदेश का, है सबको अनिवार्य।


नहीं वस्तुएँ चीन की, हैं हमको स्वीकार्य।।


 


क्रय हो वस्तु स्वदेश की,तब पछताए चीन।


उसकी बढ़ती शक्ति को,लें हम मिलकर छीन।।


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