काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकार रचना उनियाल

रचना उनियाल(परिचय)


 


माता पिता साहित्यिक क्षेत्र से जुड़े हुए थे।


पिता- स्वर्गीय कवि भगीरथ


कवि भगीरथ की कृतियाँ


जय ध्वनि, सृष्टि-सेतु


माता-श्रीमती मंजू काले


पति -कर्नल अरविंद मोहन उनियाल (सेवानिवृत्त)


 


शिक्षा-रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर, व बी.एड.


(भूतपूर्व अध्यापिका )



उपलब्धियाँ-


बारह वर्ष आई.टी.आई. महिला मंडल के सचिव के पद पर रहते हुये तीन सौवेनियरस का लोकार्पण किया।



रचनाओं का विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन।
मंचों पर काव्य पाठ 
रुचि-गायन,लेखन,कार्यक्रमों का आयोजन,

प्रकाशित काव्य साझा संग्रह-


 


1-शब्द कलश,


2-महफ़िल-ए-ग़ज़ल,
3-भाव सरिता,


4-योग संगम,



एकल संग्रह-


1-प्रस्तुति -एक प्रयास


2-नोराइज़


3-भगीरथ की रचना


4-दमकते बदरवा


5-काव्यमेघ


 


सम्मान-


साहित्य प्रहरी सम्मान-प्रेरणा मंच बैंगलोर,



शीर्षक स्तम्भ,शब्द सारथी,शब्द कुंज सम्मान,शीर्षक साहित्य परिषद (भोपाल)
काव्य सागर सम्मान-साहित्य सागर,(राजस्थान)



पुरस्कार-80 बार से अधिक बार श्रेष्ठ सृजन के लिए शीर्षक साहित्य परिषद, साहित्य संगम संस्थान, नारी सुवास मंच, रचनाकार मंच, उड़ान, भावों के मोती,दोहाकार ,नवोदित साहित्यकार,सोपान साहित्यिक संस्था,साहित्य सरिता संस्थान,अटल काव्यांजलि, जय हिंद जय नदी,क़लम बोलती है,मंचों द्वारा सम्मानित


 


साहित्य ज्योति,शिवमृत,शिवपूजन सहाय,


साहित्य तुषार रत्न,मधुशाला काव्य गौरव,साहित्य सारथी,अमीर खुसरो,शिव साहित्य साधक, महेंद्र कपूर,लोक गीतकार,मातृत्व,शोभा गुर्टू जी,अटल कर्मवीर,सम्मानों से सम्मानित



इसके अतिरिक्त समीक्षाधीश , श्रेष्ठ टिप्पणीकार सम्मानों से सम्मानित


 


शीर्षक साहित्य परिषद भोपाल द्वारा सम्मानित “श्रेष्ठ वार्षिक रचनाकार” २०१९ “शब्द सागर”(भोपाल)


 


शीर्षक आन माइक प्रतियोगिता २०२० में प्रथम पुरस्कार “शब्द गौरव” से सम्मानित(भोपाल)


 



पता-फ़्लैट नम्बर-४१० 
होरामवु मेन रोड,
होरामवु,
बैंगलोर(कर्नाटका)
पिन कोड-५६००४३
मोबा0-९९८६९२६७४५


 


१-


शिव की स्तुति


कुंडलियाँ


आओ वसुधा देव तुम ,काटो जग के त्रास।


नमन करें हम आपको, तारो बंधन रास।।


तारो बंधन रास, वंदना करें तुम्हारी।


मिले ज्ञान ओंकार, यज्ञमय हे त्रिपुरारी।।


रचना रचती जाय,भक्ति से शिव को पाओ।


पाप करे जो प्राण,उसे दंडित कर आओ।।


 


शंकर भोले नाथ का, लुभा रहा है वेश।


मुण्डमाल हैं धारते, गंग धरें हैं केश।।


 गंग धरें हैं केश, भाल में चंद्र सुहाता।


व्याघ्र चर्म को डाल,कंठ में गरल विधाता।।


रचना रचती जाय,लोक के हैं अभयंकर।


भस्म लपेटे नाथ, नमन हे भोले शंकर।।


 


त्रिपुरारी के ध्यान से, कटे कर्म का फाग।


महाकाल आराधना, तज जायेगा राग।।


तज जायेगा राग, शम्भु लोकों के स्वामी।


काल शोभता अंग , करूँ वंदना प्रनामी ।।


रचना रचती जाय, रूद्र हैं त्रिनेत्रधारी।


निराकार साकार, सभी जानें त्रिपुरारी।।


 


डम डम डम डमरू बजे, डमरू धारी नृत्य।


बम भोले तांडव करें, प्रलेयन्कारी कृत्य।।


 प्रलेयन्कारी कृत्य, देह में त्रिशूल सजता।


शाश्वत है यह अस्त्र ,उमापति के रंग रजता।।


रचना रचती जाय,महेश्वर करते बम बम ।


आशुतोष का क्रोध,सृष्टि में होती डम डम।।


 


स्वरचित


रचना उनियाल


२-


फुहारें(नवगीत)


               


मेघावली कर जाय झंकारें,


सप्त सुरों में झूमती फुहारें।



झिर-झिर लड़ियाँ क्षुधा बुझाती,


वसुधा पेंगें भरती जाती,


हरीतिमा नयनों को भाये,


मुदित प्रकृति उल्लासित गाती।


 


अंबुविहार धरती को सँवारें।


सप्त सुरों में झूमती फुहारें।।


 



सुधियों में पावस की रजनी,


नेह सिक्त तब साजन-सजनी,


वृष्टि बहुल फुहार ने छेड़ा,


मनोहारी प्रणय धुन बजनी।


 


प्रेम निहार के खिलती बहारें।


सप्त सुरों में झूमती फुहारें।।



यदुनंदन हैं राजदुलारे,


उतरे अचला घन के तारे,


मुरलीधर की मुरली बोले,


रवितनया तट रास रचा रे।


 


पड़ती नव रंगों की बौछारें।


सप्त सुरों में झूमती फुहारें।।


 


३-


 


समर्पण(राष्ट्र के प्रति)


वीर छंद आधारित गीत (१६,१५ मात्राएँ अंत २१)


 


भारत भू के भूषण हो तुम,उन्नति का अतुलित अंबार।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


 


अधिकारों की है लगी हुई,


हर कोने में जैसे होड़।


मुख से बोले वाणी ऐसे,


बोलों से ही देंगें तोड़।


चंचल दूषित अंतस को तज,अंतह अवलोकन शृंगार।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


 


वसुधा के सीमा के प्रहरी,


चपल अटल चौकस दिन-रात।


न्यौछावर करते प्राणों को,


बलिदानी सैनिक की बात।।


सीमाओं की करें सुरक्षा,त्रिदल शस्त्र की सुन टंकार।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


 


झेलम कावेरी अरु सतलज,


ब्रह्म पुत्र करता है नाद।


भारत माता की संततियों,


कहो हिंद जय ज़िंदाबाद।


तीन रंग से जीवन पाओ , नेह बंध है विचरण सार ।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


 


अनुबंधित हो गये धरा से,


पाया जब धरणी का द्वार।


उऋण तभी तुम हो पाओगे,


अर्पण करना सत उद्गार।


वचन कर्म से माँ के आँचल,पर करना पुष्पों बौछार।


करो समर्पण भाव सुदर्पण,धरो विलक्षण गुण की धार।।


स्वरचित


रचना उनियाल


 


४-


पर्यावरण दिवस


जनहरण घनाक्षरी


 


समय गुनन तन,


 घट मत वन घन,


    शपथ धरत मन,


       प्रकृति मुदित हो।


 


जन-जन उर तल,


    प्रखर ललक बल,


       अनिल अचल चल,


         तनु मुखरित हो।


 


सुत घर सुनकर,


    तरु क्षिति बुनकर,


       घटत मलिन शर,


          द्रुम अगणित हो।


 


नभचर नभ वर,


    सरि सर पय भर,


       मनुज हृदय धर,


          दिवस हरित हो।


 


स्वरचित


रचना उनियाल


५-


व्यायाम


 


गोपी छंद(मात्रिक छंद,चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत, प्रति चरण १५ मात्राएँ ,आदि में त्रिकल,अंत गुरु /वाचिक,चरणातक दो गुरु)


 


करे व्यायाम सदा काया।


रोग की पड़े नहीं छाया।।


 


प्रात उठ दौड़ लगा प्राणी।


बोल फिर मधुरिम सी वाणी।


उदय जब सूर्य देव आयें।


नमन से तन भी सुख पायें।


धमनियों में शोणित भागे।


लुप्त हों चिंता के धागे।


शांति का भाव मनुज पाया।


करे व्यायाम सदा काया।


 


जीत जाओगे हर बाजी।


बनोगे तन के तुम काजी।


बदन शतरंज जीत राजा।


खुले उन्नति का दरवाजा।


कर्म फल तन मन का योगी।


बना तुम नियम बनो भोगी।


बरस फिर लक्ष्मी की माया।


करे व्यायाम सदा काया।


 


हृदय में गर्व भाव आता।


योग का भारत है दाता।


जीव यदि जीवन को जीना।


काय में कसरत को सीना।


अंश के अंग खिले लाली।


ध्यान तुम रखना बनमाली। 


खिले उपवन में हर ज़ाया।


रोग की पड़े नहीं छाया।।


 


स्वरचित



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