आजादी का सपना संजोये कितने ही कुर्बान हुए ।
पाने को आजादी देश की कितने ही बलिदान हुए ।।
बरसों बाद देखा है हमने चेहरा हँसता वादी का ।
आज मना लो उत्सव ये उत्सव है आजादी का ।।
लहू से सींचा है अपने तब
बाग खिला इस माटी का ।
वीरों के बलिदान से महके
चमन देश की घाटी का ।।
कफ़न बाँध कर चलते हैं वो..2
रूप धरा है खादी का ।।
आज मना लो उत्सव ये उत्सव है आजादी का ।।
देश की रक्षा में जो लगे हैं
भेद-भाव ना उनमें है ।
दूर रखो मेरे देश से उनको
द्वेष भावना जिनमें है ।।
तोड़ रहे हैं देश को मेरे..2
करके बहाना जाति का ।।
आज मना लो उत्सव ये उत्सव है आजादी का ।।
शांति प्रेम स्नेह भरा है
मेरे देश के कण कण में ।
हरियाली मुसकाती है अब
धरा के पावन हर क्षण में ।।
मुस्काती है मातु भारती..2
रूप धर के शहजादी का ।।
आज मना लो उत्सव ये उत्सव है आजादी का ।।
कुं जीतेश मिश्रा शिवांगी
लखीमपुर खीरी
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