कुछ पल ही सही मेरे प्रियतम तुम साथ हमारे रह लेते ।
कुछ सुनते तुम दुख दर्द मेरे कुछ अपने हिय की कह लेते ।।
तुम प्रेम की नदिया बनकर के मधुरिम सा राग बजा देते ।
मैं बहती कहीं लहर बनकर तुम खुद में हमें बसा लेते ।।
बनकर के अनोखा संगम ये परिभाषा प्रेम की गढ़ देता ।
मिलकर के हम इक दूजे से स्वछन्द धरा पे बह लेते ।।
कुछ पल ही सही मेरे प्रियतम तुम साथ हमारे रह लेते । (१)
पथरीली राहों पर चलकर गर कंटक भी आकर मिलते ।
वो साथ हमें पाकर पथ पर कंटक भी सुमन के ज्यों खिलते ।।
अर्धांग मेरे बनते यदि तुम अर्धांगिनी तेरी हो जाती ।
नयनों से अश्क बहें चाहे जो भी हो सितम मिल सह लेते ।।
कुछ पल ही सही मेरे प्रियतम तुम साथ हमारे रह लेते ।। (२)
लाते जो किनारे पर हमको इक पास किनारा कर लेते ।
हम हाथ थाम करके तेरा जीवन का सहारा कर लेते ।।
तुम बिखरो यदि तो सम्भालूँ मै इतना अधिकार हमें देना ।
इक दूजे के हो सहारे हम खुशियों को हमारा कर लेते ।।
कुछ पल ही सही मेरे प्रियतम तुम साथ हमारे रह लेते ।। (३)
कुं जीतेश मिश्रा शिवांगी
धौरहरा लखीमपुर खीरी
उत्तर प्रदेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें