अभिजित त्रिपाठी

कहानी- पोस्ट ऑफिस


 


आज राजीव जी पोस्ट ऑफिस में ठंढ से कांपते हुए बैठे हैं। जनवरी का महीना चल रहा है और ठंढ बहुत ज्यादा पड़ रही है। आमतौर पर अब बहुत कम ही काम रहता है, किसी की चिट्ठी कभी आती ही नहीं। कभी कभार भूले बिसरे किसी की चिट्ठी आती है। राजीव जी दिन में ऑफिस में आते, देखते कोई चिट्ठी पहुंचानी है कि नहीं। जिस दिन उनके क्षेत्र में कोई चिट्ठी निकलती, उस दिन जाकर चिट्ठी दे आते, नहीं तो पूरा दिन ऑफिस में बैठकर सबके साथ आराम करते, गप्पबाजी होती।


आज एक चिट्ठी आई थी। चिट्ठी पर पता लिखा था जयनगर, एकदम किनारे का गांव। अब इतनी ठंढ में भला कौन इतनी दूर जाना चाहेगा। राजीव को बहुत गुस्सा आ रहा था। मन कर रहा था कि चिट्ठी को अभी फाड़कर फेंक दे। भला आज इतना मॉडर्न जमाना है, लोग मोबाइल में वीडियो कॉलिंग कर रहे हैं और ये पता नहीं कौन है, जिसने चिट्ठी लिखी है। 


लेकिन चिट्ठी पहुंचाना तो मजबूरी थी। इसलिए मजबूर होकर राजीव जी को चलना पड़ा। आज ठंढ बहुत ज्यादा थी और उसके अलावा धीरे धीरे बारिश भी हो रही थी। वो बाइक से एकदम धीरे धीरे जा रहे थे लेकिन तब भी बहुत ठंढ लग रही थी। उनको बहुत गुस्सा भी आ रहा था। बारिश होने के कारण ठंढ और ज्यादा लगने लगी थी। अचानक उनके दिमाग में एक ख्याल आया कि क्यों ना खुद ही रजिस्टर में लाइक कर दें कि चिट्ठी मिल गई और चिट्ठी पहुंचाने ना जाएं। वो एक चाय की दुकान पर रुके। फिर उन्होंने अपना थैला खोला और रजिस्टर निकाला। फिर उनके मन में विचार आया कि एक बार चिट्ठी पढ़ लूं, आखिर क्या लिखा है इसमें। राजीव जी ने लिफाफा खोला और चिट्ठी निकाली।


 


उन्होंने चिट्ठी पढ़नी शुरू की,,,


मेरी प्यारी, 


राधिका,,


 


कैसी हो ? मम्मी-पापा कैसे हैं? तुम मेरी चिंता मत करो मैं एकदम ठीक हूं। मैं समय से भोजन करता हूं और आराम भी करता हूं।


 


मुझे पता है कि तुम मुझसे बहुत नाराज़ हो। पिछले महीने मैंने आने का वादा किया था लेकिन आ नहीं सका। तुम्हारी चिट्ठी मिली थी। मुझे पता है कि तुम बहुत परेशान होती हो, तुमको मेरी चिंता रहती है, तुम मेरी आवाज़ सुनना चाहती हो, लेकिन क्या करूं? जब से कश्मीर में मेरी ड्यूटी लगी मैं कॉल नहीं कर पाता। यहां पर मोबाइल का नेटवर्क नहीं रहता है। हां चिट्ठी लिख सकता हूं लेकिन पोस्ट ऑफिस बहुत दूर है इसलिए महीने में एक बार ही चिट्ठियां भेजी जा सकती हैं। लेकिन तुम चिंता मत करो मैं एकदम ठीक हूं मुझे कुछ नहीं होगा।


 


वहां गांव में मौसम कैसा है? यहां पर तो बहुत ठंढ पड़ती है। गर जगह बर्फ जमी रहती है। हम लोग बर्फीली हवाओं के बीच बंकरों में बंदूक ताने खड़े रहते हैं। मैं ठंढ से बचने के लिए जैकेट पहने रहता हूं, क्यों कि मुझे पता है कि तुम मुझे डांटकर स्वेटर पहनाने नहीं आ सकती हो। यहां पर पूरा बंकर बर्फ से ढंक जाता है। बहुत ठंढ लगती है, कभी कभी तो हाथ पैर सुन्न पड़ जाते हैं, उंगलियां काम करना बंद कर देती हैं, लेकिन हम बंदूक ताने खड़े रहते हैं ताकी कोई दुश्मन हमारे देश की तरफ नजर उठा कर ना देख सके और हमारे देशवासी महफूज रहें।


 


पता है अक्सर बारिश भी होती रहती है। वैसी बारिश नहीं होती है, जैसी गांव में होती है। यहां पर पानी से ज्यादा बर्फ गिरती है। मुझे अक्सर याद आता है कि मैं बारिश में भीगने के लिए छत पर बाग जाता था और तुम मेरे पीछे पीछे छाता लेकर दौड़ती हुई आती थी। मुझे बहुत अच्छा लगता था जब तुम मेरे ऊपर छाता लगाकर मुझे डांटती हुई नीचे लाती थी। फिर तौलिए से मेरा सिर पोंछती और जब मैं शरीर पोंछकर कपड़े बदल लेता तो तुम मेरे लिए अदरक वाली चाय बनाकर लाती थी। 


 


मुझे तुम्हारी, गांव की सबकी बहुत याद आती है। तुमने चिट्ठी में लिखा था कि तुम मुझसे बहुत गुस्सा हो। मुझे तुम्हारी नाराजगी का कारण पता है। तुम्हारा गुस्सा होना जायज है लेकिन मैं क्या करूं?


मेरी मोहब्बत तुमसे जरा सी भी कम नहीं हुई है, मैं आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूं बल्कि उससे ज्यादा ही करता हूं। लेकिन मैं अपने वतन से भी प्यार करता हूं। 


 


राजीव जी इसके आगे पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा सके। उन्होंने तुरंत चिट्ठियां रखी और जयनगर की तरफ चल पड़े। ठंढी के दिनों की शाम थी, काफी अंधेरा हो चुका था। राजीव ने बाइक में लाइट ऑन कर दी। अब उनको जरा सी भी ठंढ नहीं लग रही थी। बारिश में भीगना भी उनको जरा सा भी बुरा नहीं लग रहा था।


 


उनको आज पता चला कि सच्चा इश्क क्या होता है। हमारे सैनिक भी सच्चा प्रेम करते हैं, उनकी मोहब्बत वही है, बस माशूक की जगह वतन की माटी ने ले ली है। प्रेम वही रहता है, वही बारिश, वही हवाएं, वही गीत,, बस महबूब बदलने पर इश्क के मायने बदल जाते हैं।


 


 


अभिजित त्रिपाठी


पूरे प्रेम, अमेठी,


उत्तर प्रदेश


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