कंस का आतंक छाया, चंहु ओर भय छाया,
त्राहि त्राहि करे जन, हरि को पुकारती।
प्रजा सारी दुःखी हुई, धरती विह्वल हुई,
अत्याचारी व्यभिचारी, कंस को दुत्कारती।
जो भी करें पूजा पाठ, उतरेंगे मौत घाट,
कंस की मुनादी हुई, जिंदगी चित्कारती।
चारों ओर हाहाकार, मौत का सजा बाजार,
खून प्यासी तलवारें, मौत ललकारती।
देवकी से जन्मा सुत, कंस का करेगा हत,
सुनके गगन वाणी, कंस घबराया है।
बहिन को बंदी किया, बन्दीगृह डलवाया,
साथ बहनोई के भी, ताला जड़वाया है।
प्रभु अवतार लिया, कृष्ण रूप जन्म लिया,
अत्याचारी को संहारा, सुख बरसाया है।
कृष्ण के अनेक नाम, भजे पाए हरि धाम,
पाप कटे गति मिले, ग्रंथों ने बताया है।
मदन मोहन शर्मा 'सजल'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें