धुँआ धुँआ सी जलती रही जिंदगी,
खून कतरा बिखरती रही जिंदगी,
हजारों ग़म लिये दिल की पनाह में,
लबों पे हँसी' सँवरती रही जिंदगी,
करवटें बदलती रही हसीं यादें,
बेखुदी में महकती रही जिंदगी,
टूटती गई मिलन की तमाम आस,
ख्वाब दरिया में' पलती रही जिंदगी,
जिंदगी न होती न होता इश्के' ग़म,
सोचकर हाथ मलती रही जिंदगी।
मदन मोहन शर्मा सजल
कोटा (राजस्थान)
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