स्वतंत्रता की बलिवेदी पर
जिसने भी जान गंवाई है
अंग्रेजी शासन से मुक्ति
हर भारतवासी पाई है।
राजा और महाराजाओं सबने
जम कर लूटा जनता को,
अंग्रेजी गोरों की हुकूमत
दास बनाया जनता को।
दो सौ साल गुलामी सहकर
अंगड़ाई ली जनता ने,
मुक्ति मिले अत्याचारों से
किया फैसला जनता ने।
सन सत्तावन से बिगुल बजा
और रक्त बहाया वीरों ने,
बांध कफ़न सिर पर लोगों ने
गर्दन काटी शमशीरों ने।
लाल रक्त की बहती नदियां
नींद नही थी आंखों में,
इंकलाब के गूँजे नारे
गली गली चौराहों में।
कितने ही युवा गोली खाये
कितने ही फांसी भेंट चढ़े,
अनगिन जेलों काल कोठरी,
कितने ही शूली आन चढ़े।
भगतसिंह, सुखदेव, गुरु ने
नाकों चने चबा चबाये थे,
सुभाष चन्द्र ने बना फौज
दुश्मन के गले दबाये थे।
अंग्रेजी फौजें थर्राई
वीरों की बलिदानी से,
तब जाकर आजादी पाई
अंग्रेजों की गुलामी से।
महापर्व आजादी का यह
याद दिलाता कुर्बानी,
सुने सुनाए गाथा वीरों की
भावी पीढ़ी अपनी जुबानी।
देश रहेगा हम भी रहेंगे
इसकी रक्षा भार उठाये,
तन मन वारें शीश झुकाए
मिलकर सारे कदम बढ़ाये।
मदन मोहन शर्मा 'सजल'
पता - 12-G-17, बॉम्बे योजना, आर0 के0 पुरम,
कोटा (राजस्थान)
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