धर्म आस्था की अवनि आकाश
धर्म मर्यादा संस्कृति संस्कार।।
धर्म शौम्य विनम्र युग समाज
व्यवहार।।
धर्म जीवन मूल्यों आचरण का
सत्य सत्यार्थ।।
धर्म छमाँ करुणा सेवा परोपकार
कल्याण जीव जीवन का सिद्धान्त।।
धर्म न्याय नैतिकता ध्येय ध्यान ज्ञान सिद्धांत।।
धर्म निति नियति का मौलिक आविष्कार।।
धर्म द्वन्द द्वेष घृणा
का प्रतिकार।।
धर्म कर्म वचन दायित्व कर्तव्य बोध से धारण करने प्राणी प्राण।।
धार्म धैर्य है धर्म शौर्य है धर्म
विजयी पथ का मार्ग।।
शासन शक्ति की भक्ति शासक
मति अभिमान का समय काल।।
शासन भय है भय निर्भयता का
आधार शासन शक्ति का मौलिक
अधिकार।।
शासन समन्वय है जन मानस
मन की आवाज़।।
शासन आस्था नहीं शासन विश्वास
राज्य् निति और राजनीति का साकार।।
शासन द्वेष भेद न्याय अन्याय
विवेचना समय काल स्तिति परिस्तिति की माँग।।
शासन दो धारी तलवार है संवैधानिक इसके धार।।
शासन का मूल व्यवहार शासक
की मर्जी और विचार।।
न्याय अन्याय की व्याख्या मौके
मतलब के अनुसार।।
शासन की अपनी विवासता
अँधा कभी कभी दृष्टि दृष्टिकोण
अतीत वर्तमान।।
धर्म और शासन में अंतर मात्र
धर्म मानव मानवता जीव जीवन
निरंतरता ।।
आस्था की अस्ति का
नाम सिर्फ उत्कर्ष उत्थान उत्सर्ग
प्रसंग परिणांम।।
शासन जब चल पड़ता धर्म
मार्ग पर शासन धर्म एकात्म स्वरुप जन्म लेता मर्यादा
का श्री राम।।
धर्म शासन का उद्देश्य एक समरसता समता मूलक युग
समाज का निर्माण।।
आस्था और विश्वाश का विलय
एक दूजे का ग्राह सम्मत का शासन ।।
जन आकांक्षाओं का
अभिनन्दन राम राज्य् की बुनियाद ।।
जन जन राम सरीखा
शासक शासन प्राण सरीखा।
धर्म का शासन शासन में धर्म
नैतिक युग का मर्म राम राज्य् और जय श्रीराम का ।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
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