नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

खुदा तेरा अजीब करिश्मा इंसान


तुझे अपने इल्म हुनर की देता तालीम आज इंसान।।


 


तू खुद ही खुद के करिश्मे से परेशान।


बड़े गुरुर से बनाया था तूने इंसान


खुद की इबादत का दुनियां में


मेहमान इंसान।।


 


इंसान ही तोड़ता तेरा गुरुर इंसान ही शैतान।


तू खुद ही सोचता होगा तूने इंन्सान बनाया या शैतान।।


 


तेरे वसूलों को आय दिन करता


तार तार तेरी ही कसमें खाता करता एक दूजे करता वार इंसान।।


 


इंसानी जज्बे के मायने बदल


गए रिश्ते मौका मतलब का


नाम तिज़ारत की इबादत का इंसान।।


 


इंसान ही कातिल एक दूजे का


धोखा मक्कारी मतलब फरोसी का सबब आज इंसान।।


 


खुद के गुरुर में पैरों तले रौंदता तेरी कायनात।


एक दूजे की पीठ में खंजर भोकता लेकर तेरा नाम इंसान।।


 


तेरे ही नाम की कस्मे खाता तेरा


ही तौहीन करता इंसान।


खुदा तू तो है मुंसिफ मिज़ाज़


तेरे यहाँ वकील नहीं।


तेरे यहाँ क़ोई दलील नहीं।


तेरी किताब में लिखा नहीं माफ़।।


 


इंसान फिर भी डरता ही नहीं


तेरे कहर का खौफ रहा ही नहीं


खुद को खुदा समझ बैठा इंसान।।


 


तेरा वजूद ही आज खतरे में है


हर रोज नई मुसीबत तेरी ही दुनियां में तेरे लिए पेश करता इंसान।।


 


तू रहीम है करीम है कब तक


माफ़ करता रहेगा हद से गुजरता


इंसान।


क़यामत किसने देखा है आय दिन


क़यामत के करिश्मे से रूबरू होता इंसान।।


 


क़यामत के तेरे हिसाब का करता


मज़ाक इंसान।


सच तो यही तू तो नेक नियति


का ईमान ।।


 


तू ही इंसानो में तूने ही बनाया शैतान।


तेरे ही सामने अहम मसाला है किसे माफ़ी दे किसे दे सजा का


पैगाम।।


 


इंसान को सजा दे या मारे शैतान


दोनों तेरी ही सजदा के इज़ाद। गैरत मंद तेरी ही कायनात को


करते बदनाम।।


 



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