अंनत वियोम तक फैला उजियारा,
बोलो किसने फैलाया है ।
नित सूरज ले कर प्रकाश,
बोलो कैसे आ जाता है ।
चाँद चाँदनी लेकर आता,
नभ में चहुँ ओर छा जाता है ।
टिमटिम करते तारे प्यारे,
कौन अनंत में फैलाता है ।
हरित ओढ़नी ओढ़ धरा को,
कौन जग में महकाता है।
मधुर मधुर गुंजार भँवर की,
कैसे मन को मोह जाता है ।
ये तो लीला उसकी लगती,
अनंत वियोम जो छा जाता है।
निर्विकार हो,या हो साकार,
ॐ,ब्रह्मांड समा जाता है।
प्रभु तेरी लीला है न्यारी ,
कण कण रहते हो अविनाशी।
जाकी रही भावना जैसी,
तुम्हरी सूरत देखी तीन वैसी।
निशा अतुल्य
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