निशा अतुल्य

मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं 


मन निर्मल कर दो ।


भर दो भक्ति रस की प्याली


भव से पार कर दो ।


 


ज्ञान का उपदेश दिया जो


कर्मपथ विस्तार करो


रस धारा बहा प्रेम की 


प्रेम मय संसार करो ।


तारो मुझको भव से कान्हा


बेड़ा पार कर दो ।


 


मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं,


मन निर्मल कर दो ।


 


कैसी विपदा आन पड़ी ये


राहें सरल करो


लूट रहा जग मिल कर मुझको


प्रभु तम दूर करो ।


आई शरण तुम्हारे प्रभुवर


प्रभु दर्शन दे दो ।


 


मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं,


मन निर्मल कर दो ।


 


झूठे सारे जग के बंधन


मुझे सहारा दो ।


टूटे न कभी आस जिया की


मन उज्ज्वल कर दो ।


सपने हो सब जग के पूरे


ऐसा जग कर दो ।


 


मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं,


मन निर्मल कर दो ।


 


सुन्दर ये संसार बनाया 


कष्ट सब के हर लो ।


तुम तो पालन हारे प्रभु 


जग का ध्यान धर लो ।


कष्ट निवारो सब के प्रभु तुम


भाव सरल कर दो ।


 


मेरे कान्हा द्वार खड़ी मैं,


मन निर्मल कर दो ।


 


निशा अतुल्य


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