हे
गणपति ,मंगलमूर्ति
वक्रतुंड, महाकाय, गजानन
एकदंत, दयावन्त
पधारो।
चन्द्र
हंसे देख
शाप आपसे पाया
हो कलंकी
घबराया।
किनी
विनती रोकर
चतुर्थी चंद्र वर्जित
कर,क्षमादान
दीना ।
गणपति
कर परिक्रमा
मात पिता की
प्रथम पूज्या
कहलाये ।
सँग
रिद्धि सिद्धि
शुभ लाभ तुम्हारे
संकट काटे
सारे ।
भावे
पान, सुपारी
मोदक,दूर्वा प्यारी
विद्या-बुद्धि
प्रदाता ।
भक्त
तुम्हें नित
मन से ध्याते
समृद्धि, सुख
पाते।
कल्याण
करें प्रभु
काटें भव फंदा
तारे जीवन
से ।
निशा"अतुल्य"
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