नूतन लाल साहू

बदलत हे जिनगानी


लईकामन अब नई पकड़य


तितली अउ फुरफुंदी


नदागे ढेंकी कुरिया अउ जाता


माटी के कुरिया घलो नदावत हे


अब नई हे फुरसत, सबो झन काहत हे


वाह रे कम्प्य़ूटर अउ मोबाइल


तोर टावर ले, चिरई चिरगुन नदावत हे


कइसना होथे, लइकई


लइकापन ल लइका मन भुलावत हे


चूल्हा के आगी, घलो नदावत हे


इही पायके, लम्बा उमर ह सिरावत हे


लइका मन अब नई पकड़य


तितली अउ फुरफुंदी


नदागे ढेंकी कुरिया अउ जाता


माटी के कुरिया घलो नदावत हे


अब नई हे फुरसत, सबो झन काहत हे


जंगल कोन ल कहय,अपन पीरा


गांव म नइये,अब पीपर के छइया


मोर मन पूछथे,मोरेच ले


का ये ही नीव ऊपर, रचबे तै अपन


नारी ल देवी कहवइया समाज


वोला इंसान काबर नइ मानत हे


काबर होवत हे, अपहरन अउ बलतकार


तकलीफ़ म घलो, रहिथे चुपचाप


पिंजरा म बइठे मइना,देखत हे अगास


कतका गहिरागे हे, अंधियार


अइसना म नदा जा ही, एक दिन पबरित अहार


लइका मन अब नई पकड़य


तितली अउ फुरफुंदी


नदागे ढेंकी कुरिया अउ जाता


माटी के कुरिया घलो नदावत हे


अब नई हे फुरसत, सबो झन काहत हे


नूतन लाल साहू


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