नूतन लाल साहू

करो न अभिमान


राजा अनेक हुये,पृथ्वी पर


रूप तेज और बहुत बलवान


तू छोड़ दें,वृथा अभिमान मानव


सब दिन होत न एक समान


सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र को देखो


एक दिन था,संपत्ति मेरु समान


स्वप्न में ही किया दान सब कुछ


बिकना पड़ा,उन्हें पूरा परिवार


राजा अनेक हुये,पृथ्वी पर


रूप तेज और बहुत बलवान


तू छोड़ दें, वृथा अभिमान मानव


सब दिन होत न एक समान


स्वयं प्रभु राम और मां जानकी को देखो


एक दिन विचरण करते थे,पुष्पक विमान पर


जिन्हे रुदन करते,हम देखे


माता जानकी के वियोग पर


राजा अनेक हुये,पृथ्वी पर


रूप तेज और बहुत बलवान


तू छोड़ वृथा अभिमान मानव


सब दिन होत न एक समान


राजा युधिष्ठिर को ही देखो


एक दिन बैठे थे,धर्म सिंहासन पर


भगवान श्री कृष्ण का अनुचर होते हुये भी


रोक न पाया, द्रौपदी के चिर हरण को


राजा अनेक हुये,पृथ्वी पर


रूप तेज और बहुत बलवान


तू छोड़ दें, वृथा अभिमान मानव


सब दिन होत न एक समान


भुल न जाना,जग में देख ममता को


और देख कपट व्यवहार


किसका तू है,और है कौन तुम्हारा


स्वारत रत है,यह संसार


राजा अनेक हुये,पृथ्वी पर


रूप तेज और बहुत बलवान


तू छोड़ दें, वृथा अभिमान मानव


सब दिन होत न एक समान


 


नूतन लाल साहू


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