पंडित डीडी पाठक अनुराग वशिष्ट

चंदन है इस देश की माटी मैं भी तिलक लगाऊंगा,


देश की रक्षा की खातिर सरहद पर लड़ने जाऊंगा।


 


सेना में शामिल होकर मैं भी रक्षक बन जाऊंगा,


दुश्मन देश की सेनाओ के खट्टे दांत कराऊंगा।


चुन चुन कर दुश्मनों को जहन्नुम में पहुंचाऊंगा।


भारत मां का बनकर सेवक देश का मान बढ़ाऊंगा।


 


कश्मीर से कंयाकुमारी तक तिरंगा मैं फैराऊंगा।


देश की आन की खातिर हंसकर बलिदान हो जाऊंगा। 


चंदन है इस देश की माटी मैं भी तिलक लगाऊंगा।


देश की रक्षा की खातिर सरहद पर लड़ने जाऊंगा।


 


वीर शिवाजी राणा के पद्चिन्हों पर मैं चल जाऊंगा।


खंड खंड में बटे देश को अखंड भारत बनाऊंगा।


स्वामी जी के सपनों का विश्वगुरू भारत मैं बनाऊंगा।


देश की रक्षा की खातिर मैं कुरवानी दे जाऊंगा।


 


चंदन है इस देश की माटी मैं भी तिलक लगाऊंगा।


देश की रक्षा खातिर शरहद पर लडने जाऊँगा।


 


पंडित डीडी पाठक अनुराग वशिष्ट


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