पवन गौतम बमूलिया

आज हिमालय की छाती 


की पीर सुनाने आया हूँ !


फिर से निकले कोई गंगा 


नीर बहाने आया हूँ ! 


लैला को मजनूं रांझा से


हीर मिलाने आया हूँ !


खण्ड खण्ड भारत की मैं 


तस्वीर दिखाने आया हूँ !


 


त्याग तपस्या और कुर्बानी 


हाय सभी बेकार हुई !


 


आजादी की मौज गुलामी 


सेज्यादा दुश्वार हुई ! 


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अब ना कोई चन्दरशेखर 


ओर ना राजगुरू होगा !


यवनो से लडने वाला ना 


झेलम वीर पुरू होगा !


जौहर के त्योहार तो जैसे 


नानी की बातें होगी !


आलम अंधकार का कायम 


हाँ ! काली राते होंगी !


 


आज खडी सीमा पर सेना


बेबस हो लाचार हुई!!


 


आजादी की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!


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राजनीति वाचाल हो गई


नेता हुए खूब मक्कार !


छीना झपटी हाथापाई 


और संसद हैै शर्मोसार !


क्या गाँधी ने इसीलिए 


थी खाई अंग्रेजों की मार !


बालतिलक ने माँगा था क्या 


ऐसा जन्म सिद्ध अधिकार !


 


मानवता जख्मी है और 


घावों से ये चीत्कार हुई!


 


आजादी की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!


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हत्या चोरी और डकेती 


जाति धर्म वाला भूचाल !


किसने डाला दूध में खट्टेपन


का चुपके से कूचाल !


एक और रोटी के लाले 


उस पाले में मालामाल ।


भूख मिटाने की मजबूरी 


हवस भेडिए बने दलाल ।


 


हाय! यही कारण है फूलन सी


देवी बन खूंखार हुई! 


 


आजादी की की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!!


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*राष्ट्रीय चिह्नो की स्थिति* 


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'हॉकी' हारी 'मोर' तडपता 


'बाघ' भागता जंगल से !


गुमसुम है मासूम 'तिरंगा' 


मंगल चिह्न अमंगल से !


'कमल' महकना छोड़ चुका है 


'राजभवन' है दंगल से !


'राष्ट्रगीत' और 'राष्ट्रगान' अब 


गाये जाते जिंगल से !


 


'बट' की छाया को तडपे 'राही' 


की करूण पुकार हुई!


 


आजादी की मौज गुलामी


से ज्यादा दुश्वार हुई !!!!!


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रचनाकार-पवन गौतम बमूलिया।


अंता जिला बाराँ(राज)


 


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