प्रखर

*राम*


 


राम जीव आलम्ब जग, सोई सृष्टि आधार।


ज़ड़ चेतन जंगम रमै, निराकार साकार।।


 


राम इमाम ए हिंद हैं, सजदा सौ सौ बार।


वो जिनके मनसबदार हैं, प्रभु उनके मनसबदार।।


 


सरजू तट मनभावनो, अवध सुहावन ठाँव।


तहाँ राम लीला करी, सियरी तरु तर छाँव।।


 


तम्बू के बम्बू उखड़, मिली पुन: जागीर।


देव गेह हित बलि चढ़े, अनत संत नर वीर।।


 


हिये कोशलापति रहैं, निग्रह इंद्रिय काम।


राम हरहिं कलमष सकल, चाहे विधाता बाम।।


 


*प्रखर*


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