प्रखर

भजो मन राम पुरुषोत्तम वही परब्रह्म परमेश्वर।


जो व्यापक सत चराचर में वो अलक्षित लक्ष अखिलेश्वर।।


वो जड़ जंगम है चेतन में चिरंतन आदि प्रलय में भी,


सियापति राम भवतारक वो करुणाकर है सरवेश्वर।।


 


अमंगलहार का सुमिरन जीव भव से पार जाते हैं।


वो वत्सल राम उनके हैं जो जीवन हार जाते हैं।।


वो सारंगधर सुदर्शनधर वो पालनहार सृष्टा भी ,


प्रखर सुमिरन से नारायण अगम भव तार जाते हैं।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रूखाबाद


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...