प्रखर दीक्षित

मुक्तिका


 


पुतलों पर मंहगे लिबास हैं, जिंदा वसन विहीन मिले।


सदसयता ने पीड़ा बांटी, प्रभुता जन मनहीन मिले।।


दौलत छीने मुँह का निवाला, शोषण दंश दिए बहुतेरे,


अक्सर उजले चेहरे वाले, मन के प्रखर मलीन मिले।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद


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