नंदलाला मुरलीधर कन्हैया श्याम बनवारी।
रसिक रसराज सांवरिया, योगेश्वर हे लिलहारी।।
छलिया ठग ठगा तुमने , तन मन से तुम्हारी मैं,
वनमाली बेनु अधरन , अलक उरझी घन कारी।।
मोहना रूप मनमोहन , नटवर हो बहुत नटखट।
करो क्यों रार माखन पै, मटकिया फोर धाए चट।।
तुम्हीं आलम्ब जीवन का, कण कण व्याप्त जग स्वामी,
तुम्हारी मैं मेरे हो तुम, उबारो नाथ तुम्हारी रट।।
प्रखर
फर्रूखाबाद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें