प्रखर फर्रुखाबाद

*मानस*


 


कविकुल गुरू तुलसी रची, मानस दिव्य अनूप।


दोहा चौपाई खचित, सोरठ छंद सरूप।।


 


मानस अमृत कुम्भ सत, पावन राम प्रसंग।


सरल चितेरा सहज पिब, झूमत मनस विहंग।।


 


पावन कलि तरणी शुभं, मानस जीवन सार।


धर्म नीति कर्तव्य का, शाश्वत मूलाधार।।


 


वाङग्यमयी वपु राम को, सिय सनेह प्रतिमान।


रुचिर नव्यता द्युति प्रखर, शम्भु शिवा आख्यान।।


 


*प्रखर*


*फर्रुखाबाद*


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