प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध"
वरिष्ठ साहित्यकार , कवि , अर्थशास्त्री , शिक्षाविद्
जन्म : 23 मार्च 1927 मंडला (मप्र)
स्थायी पता : विवेक सदन नर्मदा गंज , मण्डला म.प्र. ४८१६६१
वर्तमान पता : बंगला नम्बर A 1, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर (म.प्र.) पिन-482008
मोबाइल : 0७०००३७५७९८ / ९४२५४८४४५२
शिक्षा- एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (अर्थशास्त्र), एम.एड.,साहित्य रत्न,
शासकीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर से सेवानिवृत प्राध्यापक ।
- केंद्रीय विद्यालय जबलपुर क्रमांक 1 एवं जूनियर कॉलेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य ।
सृजन की विधाएं : कविता, अनुवाद, शैक्षिक और बाल साहित्य , चिंतन , ललित लेख।
प्रकाशित पुस्तकें : २५ से अधिक किताबें
- काव्य कृतियाँ :वतन को नमन , अनुगुंजन, मुक्तक संग्रह, स्वयं प्रभा, अंतर्ध्वनि (गीत संग्रह), ईशाराधन
- अनुवाद : भगवत गीता हिन्दी पद्यानुवाद, मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद, रघुवंशम पद्यानुवाद ।
- निबंध संग्रह : उद्गम, सदाबहार गुलाब, गर्जना, युगध्वनि, जय जवान जय किसान, मानस के मोती
- शैक्षिक साहित्य : समाजोपयोगी उत्पादक कार्य, शिक्षण में नवाचार,
- बाल साहित्य : बालगीतिका , बाल कौमुदी , सुमन साधिका , चारु चंद्रिका बाल गीत संग्रह (4 भागों में शिशु गीत , से किशोर गीत तक ), आदर्श भाषण कला , नैतिक कथायें , जन सेवा , अंधा और लंगड़ा , कर्मभूमि के लिये बलिदान
ई बुक्स डेली हंट एप पर भी उपलब्ध
संपादन : अर्चना, पयस्वनी, उन्मेष, वातास पत्रिकायें ।
ब्लाग ... http://pitashrikirachnaye.blogspot.com
...संस्कृत का मजा हिन्दी में .....http://vikasprakashan.blogspot.com
फेसबुक पेज ..http://www.facebook.com/profcbshrivastava`
प्रकाशन :
- सन 1946 में सरस्वती पत्रिका में पहली रचना प्रकाशित, तब से निरंतर पत्र पत्रिकाओ में कविताये, बाल रचनायें,लेख आदि प्रकाशित हो रहे हैं ।
- वर्तमान में देशबंधु जबलपुर सहित, दशहरा रायपुर, त्रिपुरी टाईम् आदि अखबारो व पत्रिकाओ में उनके द्वारा किए गए भगवत गीता व रघुवंश के पद्यानुवादों का धारावाहिक प्रकाशन हो रहा है ।
प्रसारण :
- आकाशवाणी , दूरदर्शन से रचनाओं, वार्ताओं और चिंतन आलेखों का नियमित प्रसारण ।
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी , हिन्दी साहित्य सम्मेलन , अभियान , नेहरू युवा संगठन उर्दू अकादमी मध्य प्रदेश शासन , वर्तिका ,पाथेय सहित अनेको साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थायें उन्हें या उनकी पुस्तको को समय समय पर पुरस्कृत कर स्वयं गौरवांवित हुई हैं .
शिक्षा जगत में विशेष कार्य :
- वे केंद्रीय विद्यालय जबलपुर तथा जूनियर कालेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य हैं.
- सरस्वती शिक्षा मंदिर मण्डला के आचार्यो को उनके बाल मनोविज्ञान तथा शैक्षिक प्रशिक्षण के परिणाम स्वरूप शत प्रतिशत परीक्षा परिणाम मिले
- प्रांतीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर तथा राज्य शिक्षा संस्थान भोपाल में उन्होने माईक्रो टीचिंग पर शोधात्मक किताबें लिखी ।
- पाठ्यक्रम निर्माण, औपचारिकेतर शिक्षण, पढ़ो कमाओ, माइक्रो टीचींग, सतत शिक्षा, शैक्षिक प्रौद्योगिकी, जनसंख्या शिक्षा, पर्यावरण सुधार, शिक्षा में गुणात्मक सुधार, शालेय पर्यवेक्षण, आदि विषयो पर उनके कई शोध आलेख प्रकाशित हुये हैं । तथा उन्होने इन विषयों पर नीतिगत व मैदानी निर्णायक योगदान दिया है ।
- नेहरू युवा केद्र संगठन में अपनी रचनाधर्मिता से उन्होने युवाओ के लिये आव्हान गीतो तथा प्रेरक उद्बोधनो के माध्यम से योगदान दिया व सम्मानित हुए ।
- विश्व हिन्दी सम्मेलन भोपाल में सहभागिता .
सामाजिक अनुकरणीय कार्य :
1- नारी शिक्षा को बढ़ावा ।
2- विवेकान्द शिला स्मारक कन्याकुमारी तथा यू एन ओ भवन दिल्ली के निर्माण के लिये उन्होने धन संग्रह किया तथा व्यक्तिगत रूप से बड़ी राशि दान स्वरूप दी ।
3- मण्डला में रेड क्रास समिति की स्थापना उनके ही प्रयासो से हुई ।
4- उन्होने मण्डला में अनेक युवाओ हेतु आत्मनिर्भर रोजगार के नये अवसर दिये ।
5- वे कामनवैल्थ काउंसिल फार एजूकेशनल एडमिनिस्ट्रेशन के सदस्य हैं ।
6- आल इण्डिया फेडरेशन आफ एजूकेशनल एशोसियेशन्स के महाविद्यालयीन विभाग के वे सचिव रहे हैं ।
7- भारत चीन युद्ध, कारगिल युद्ध, लातूर के भूकम्प, उत्तरांचल आपदा आदि अवसरो पर प्रधान मंत्री सहायता कोष में उन्होने बड़ी राशि स्वतः प्रेरणा से बैंक जाकर दान दी है
8- उन्होने हजारो किताबें विभिन्न शालाओ व पुस्तकालयो में दान स्वरूप दी हैं जिससे पठन पाठन की संस्कृति को बढ़ावा मिले ।
1
भारतमाता
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ए 1, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो.७०००३७५७९८७
भारतमाता शांतिदायिनी !
सघन हरित अभिराम वनांचल
पावन नदियां ज्यों गंगाजल
विविध अन्न फल फूल समृद्धा
जनहितकारी सुख विधायिनी
आनंद मूला मधुर भाषिणी
भारतमाता शांतिदायिनी
मर्यादित शालीन सुहानी
बहुभाषा भाषी कल्याणी
मुदित आनना निष्चल हृदया
पंपरागत ग्राम वासिनी
स्नेहपूर्ण मंजुल सुहासिनी
भारतमाता शांतिदायिनी
सरल सहज शुभ सात्विक रूपा
शुभदा लक्ष्मी ज्ञान अनूपा
अतिथिदेवो भव संस्कृति पोषक
अखिल विश्व समता प्रसारिणी
निर्मल प्रेम भाव धारिणी
भारतमाता शांतिदायिनी
भौतिक सुख समृद्धि प्रदात्री
आध्यात्मिक चिंतन सहयात्री
मलय पवन सुरभित शुभ आंचल
मृदुला नवजीवन प्रदायिनी
धर्म प्राण संताप हारिणी
भारतमाता शांतिदायिनी
2
राम जाने कि क्यो राम आते नहीं ?
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
A 1 , MPEB Colony , Rampur Jabalpur
हो रहा आचरण का निरंतर पतन,राम जाने कि क्यो राम आते नहीं
हैं जहां भी कहीं हैं दुखी साधुजन दे के उनको शरण क्यों बचाते नहीं
उजड़ी केशर की क्यारी है बारूद से, रावी सतलज का जल खून से लाल है
धर्म के नाम नाहक ही फैला जुनूं , हर समझदार उलझन में बेहाल है
सारे कश्मीर में ,उधर आसाम में ,चल रही गोलियां और लगी आग है
कर रही आसुरी शक्ति विध्वंस यों , खून से गांव कोई न बेदाग है
खाने को दौड़ता सा है वातावरण , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं
रोज होते रहे जहां पूजन भजन , आज खण्डहर पड़े हैं कई वे भवन
यज्ञ करते रहे लोग जो देश हित , अब वही सैकड़ों हो रहे हैं हवन
छाया आतंक की बढ़ रही हर तरफ , घिर रहा है घरों में अंधेरा घना
लोग गुमसुम डरे सकपकाये से हैं , हरएक चेहरा नजर आता अनमना
बढ़ रहा खर औ" दूषण का नित अतिक्रमण ,राम जाने कि क्यो राम आते नहीं
बढ़ती जाती कलह हर जगह बेवजह , नेह सद्भाव पड़ते दिखाई नहीं
एकता , प्रेम , विश्वास हैं अधमरे , आदमियत आदमी से गुम हुई है कहीं
स्वार्थ , सिंहासनो पर अब आसीन हैं , कोई समझता नहीं है किसी की व्यथा
मिट गई रेखा लक्ष्मण ने खींची थी जो , महिमा मंडित है अपराधियों की कथा
है खुले आम रावण का आवागमन , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं
सारे आदर्श बस सुनने पढ़ने को हैं , आचरण में अधिकतर हैं मनमानियां
जिसकी लाठी है अब उसकी ही भैंस है , राजनेताओ में दिखती हैं नादानियां
स्वप्न में भी न सोचा जो होता है वो , हर समस्या उठाती नये प्रश्न कई
मान मिलता है अब कम समझदार को , भीड़ नेताओ की इतनी है बढ़ गई
हर जगह डगमगा गया है संतुलन , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं
है सिसकती अयोध्या दुखी नागरिक, कट गये चित्रकूटों के रमणीक वन
स्वर्णमृग चर रहे दण्डकारण्य को, पंचवटियों में बढ़ रहा अपहरण
घूमते हैं असुर साधु के वेश में , अहिल्याये कई फिर बन गईं हैं शिला
सारी दुनियाँ में फैला अनाचार है, रुकता दिखता नहीं ये बुरा सिलसिला
हो रहा गाँव नगरों में सीता हरण ,राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
3
सरस्वती वन्दना
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
vivek1959@yahoo.co.in
मो ७०००३७५७९८
शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,
डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !
हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,
स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना
आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,
चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !
सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना
बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना
रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और और ध्वंस है
बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे
ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई
बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई
उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में
भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे
चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में
जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में
थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में
हृदय को माँ ! पूर्णिमा का मधु भरा संसार दे
4
शारदी चांदनी
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ए 1, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो.७०००३७५७९८७
शारदी चांदनी सा धुला मन, जब पपीहा सा तुमको पुकारे
सावनी घन घटा से उमड़ते , स्वप्न से तुम यहां चले आना
प्राण के तार खुद जनझना के , याद की वीथिका खोल देंगे
नैन मन की मिली योजना से, चित्र सब कुछ स्वतः बोल देंगे
बात करते स्वतः बावरे से , प्रेम रंग में रंगे सांवरे से
वीण से गीत गुनगुनाते , स्वप्न से तुम यहां चले आना
शारदी चांदनी सा धुला मन, जब पपीहा सा तुमको पुकारे
है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना
दिन कटे काम की उलझनो में , रात गिनते गगन के सितारे
सांस के पालने में झुलाये , आस डोरी पे सपने तुम्हारे
मंद मादक मलय के पवन से , गंध भीनी बसाये वसन से
मोह से मोहते मन लुभाते , स्वप्न से तुम यहां चले आना
है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना
शारदी चांदनी सा धुला मन, जब पपीहा सा तुमको पुकारा
5
दुर्गावती
प्रो.चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘‘विदग्ध‘‘
A 1 एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर 482008
मो. ७०००३७५७९८
गूंज रहा यश कालजयी उस वीरव्रती क्षत्राणी का
दुर्गावती गौडवाने की स्वाभिमानिनी रानी का।
उपजाये हैं वीर अनेको विध्ंयाचल की माटी ने
दिये कई है रत्न देश को माॅ रेवा की घाटी ने
उनमें से ही एक अनोखी गढ मंडला की रानी थी
गुणी साहसी शासक योद्धा धर्मनिष्ठ कल्याणी थी
युद्ध भूमि में मर्दानी थी पर ममतामयी माता थी
प्रजा वत्सला गौड राज्य की सक्षम भाग्य विधाता थी
दूर दूर तक मुगल राज्य भारत मे बढता जाता था
हरेक दिशा मे चमकदार सूरज सा चढता जाता था
साम्राज्य विस्तार मार्ग में जो भी राज्य अटकता था
बादशाह अकबर की आॅखो में वह बहुत खटकता था
एक बार रानी को अकबर ने स्वर्ण करेला भिजवाया
राज सभा को पर उसका कडवा निहितार्थ नहीं भाया
बदले मेे रानी ने सोने का एक पिंजन बनवाया
और कूट संकेत रूप मे उसे आगरा पहुॅचाया
दोनों ने समझी दोनों की अटपट सांकेतिक भाषा
बढा क्रोध अकबर का रानी से न थी वांछित आशा
एक तो था मेवाड प्रतापी अरावली सा अडिग महान
और दूसरा उठा गोंडवाना बन विंध्या की पहचान
घने वनों पर्वत नदियों से गौड राज्य था हरा भरा
लोग सुखी थे धन वैभव था थी समुचित सम्पन्न धरा
आती है जीवन मे विपदायें प्रायः बिना कहे
राजा दलपत शाह अचानक बीमारी से नहीं रहे
पुत्र वीर नारायण बच्चा था जिसका था तब तिलक हुआ
विधवा रानी पर खुद इससे रक्षा का आ पडा जुआ
रानी की शासन क्षमताओ, सूझ बूझ से जलकर के
अकबर ने आसफ खां को तब सेना दे भेजा लडने
बडी मुगल सेना को भी रानी ने बढकर ललकारा
आसफ खां सा सेनानी भी तीन बार उनसे हारा
तीन बार का हारा आसफ रानी से लेने बदला
नई फौज ले बढते बढते जबलपुर तक आ धमका
तब रानी ले अपनी सेना हो हाथी पर स्वतः सवार
युद्ध क्षेत्र मे रण चंडी सी उतरी ले कर मे तलवार
युद्ध हुआ चमकी तलवारे सेनाओ ने किये प्रहार
लगे भागने मुगल सिपाही खा गौडी सेना की मार
तभी अचानक पासा पलटा छोटी सी घटना के साथ
काली घटा गौडवानें पर छाई की जो हुई बरसात
भूमि बडी उबड खाबड थी और महिना था आषाढ
बादल छाये अति वर्षा हुई नर्रई नाले मे थी बाढ
छोटी सी सेना रानी की वर्षा के थे प्रबल प्रहार
तेज धार मे हाथी आगे बढ न सका नाले के पार
तभी फंसी रानी को आकर लगा आंख मे तीखा बाण
सारी सेना हतप्रभ हो गई विजय आश सब हो गई म्लान
सेना का नेतृत्व संभालें संकट मे भी अपने हाथ
ल्रडने को आई थी रानी लेकर सहज आत्म विश्वास
फिर भी निधडक रहीं बंधाती सभी सैनिको को वह आस
बाण निकाला स्वतः हाथ से हुआ हार का तब आभास
क्षण मे सारे दृश्य बदल गये बढे जोश और हाहाकार
दुश्मन के दस्ते बढ आये हुई सेना मे चीख पुकार
घिर गई रानी जब अंजानी रहा ना स्थिति पर अधिकार
तब सम्मान सुरक्षित रखने किया कटार हृदय के पार
स्वाभिमान सम्मान ज्ञान है मां रेवा के पानी मे
जिसकी आभा साफ झलकती हैं मंडला की रानी में
महोबे की बिटिया थी रानी गढ मंडला मे ब्याही थी
सारे प्रोफेसर चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध”, जबलपुर : संक्षिप्त परिचय
प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव “विदग्ध"
वरिष्ठ साहित्यकार , कवि , अर्थशास्त्री , शिक्षाविद्गो
जन्म : 23 मार्च 1927 मंडला (मप्र)
स्थायी पता : विवेक सदन नर्मदा गंज , मण्डला म.प्र. ४८१६६१
वर्तमान पता : बंगला नम्बर A 1, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर (म.प्र.) पिन-482008
मोबाइल : 0७०००३७५७९८ / ९४२५४८४४५२
शिक्षा- एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (अर्थशास्त्र), एम.एड.,साहित्य रत्न,
शासकीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर से सेवानिवृत प्राध्यापक ।
- केंद्रीय विद्यालय जबलपुर क्रमांक 1 एवं जूनियर कॉलेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य ।
सृजन की विधाएं : कविता, अनुवाद, शैक्षिक और बाल साहित्य , चिंतन , ललित लेख।
प्रकाशित पुस्तकें : २५ से अधिक किताबें
- काव्य कृतियाँ :वतन को नमन , अनुगुंजन, मुक्तक संग्रह, स्वयं प्रभा, अंतर्ध्वनि (गीत संग्रह), ईशाराधन
- अनुवाद : भगवत गीता हिन्दी पद्यानुवाद, मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद, रघुवंशम पद्यानुवाद ।
- निबंध संग्रह : उद्गम, सदाबहार गुलाब, गर्जना, युगध्वनि, जय जवान जय किसान, मानस के मोती
- शैक्षिक साहित्य : समाजोपयोगी उत्पादक कार्य, शिक्षण में नवाचार,
- बाल साहित्य : बालगीतिका , बाल कौमुदी , सुमन साधिका , चारु चंद्रिका बाल गीत संग्रह (4 भागों में शिशु गीत , से किशोर गीत तक ), आदर्श भाषण कला , नैतिक कथायें , जन सेवा , अंधा और लंगड़ा , कर्मभूमि के लिये बलिदान
ई बुक्स डेली हंट एप पर भी उपलब्ध
संपादन : अर्चना, पयस्वनी, उन्मेष, वातास पत्रिकायें ।
ब्लाग ... http://pitashrikirachnaye.blogspot.com
...संस्कृत का मजा हिन्दी में .....http://vikasprakashan.blogspot.com
फेसबुक पेज ..http://www.facebook.com/profcbshrivastava`
प्रकाशन :
- सन 1946 में सरस्वती पत्रिका में पहली रचना प्रकाशित, तब से निरंतर पत्र पत्रिकाओ में कविताये, बाल रचनायें,लेख आदि प्रकाशित हो रहे हैं ।
- वर्तमान में देशबंधु जबलपुर सहित, दशहरा रायपुर, त्रिपुरी टाईम् आदि अखबारो व पत्रिकाओ में उनके द्वारा किए गए भगवत गीता व रघुवंश के पद्यानुवादों का धारावाहिक प्रकाशन हो रहा है ।
प्रसारण :
- आकाशवाणी , दूरदर्शन से रचनाओं, वार्ताओं और चिंतन आलेखों का नियमित प्रसारण ।
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी , हिन्दी साहित्य सम्मेलन , अभियान , नेहरू युवा संगठन उर्दू अकादमी मध्य प्रदेश शासन , वर्तिका ,पाथेय सहित अनेको साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थायें उन्हें या उनकी पुस्तको को समय समय पर पुरस्कृत कर स्वयं गौरवांवित हुई हैं .
शिक्षा जगत में विशेष कार्य :
- वे केंद्रीय विद्यालय जबलपुर तथा जूनियर कालेज सरायपाली के संस्थापक प्राचार्य हैं.
- सरस्वती शिक्षा मंदिर मण्डला के आचार्यो को उनके बाल मनोविज्ञान तथा शैक्षिक प्रशिक्षण के परिणाम स्वरूप शत प्रतिशत परीक्षा परिणाम मिले
- प्रांतीय शिक्षण महाविद्यालय जबलपुर तथा राज्य शिक्षा संस्थान भोपाल में उन्होने माईक्रो टीचिंग पर शोधात्मक किताबें लिखी ।
- पाठ्यक्रम निर्माण, औपचारिकेतर शिक्षण, पढ़ो कमाओ, माइक्रो टीचींग, सतत शिक्षा, शैक्षिक प्रौद्योगिकी, जनसंख्या शिक्षा, पर्यावरण सुधार, शिक्षा में गुणात्मक सुधार, शालेय पर्यवेक्षण, आदि विषयो पर उनके कई शोध आलेख प्रकाशित हुये हैं । तथा उन्होने इन विषयों पर नीतिगत व मैदानी निर्णायक योगदान दिया है ।
- नेहरू युवा केद्र संगठन में अपनी रचनाधर्मिता से उन्होने युवाओ के लिये आव्हान गीतो तथा प्रेरक उद्बोधनो के माध्यम से योगदान दिया व सम्मानित हुए ।
- विश्व हिन्दी सम्मेलन भोपाल में सहभागिता .
सामाजिक अनुकरणीय कार्य :
1- नारी शिक्षा को बढ़ावा ।
2- विवेकान्द शिला स्मारक कन्याकुमारी तथा यू एन ओ भवन दिल्ली के निर्माण के लिये उन्होने धन संग्रह किया तथा व्यक्तिगत रूप से बड़ी राशि दान स्वरूप दी ।
3- मण्डला में रेड क्रास समिति की स्थापना उनके ही प्रयासो से हुई ।
4- उन्होने मण्डला में अनेक युवाओ हेतु आत्मनिर्भर रोजगार के नये अवसर दिये ।
5- वे कामनवैल्थ काउंसिल फार एजूकेशनल एडमिनिस्ट्रेशन के सदस्य हैं ।
6- आल इण्डिया फेडरेशन आफ एजूकेशनल एशोसियेशन्स के महाविद्यालयीन विभाग के वे सचिव रहे हैं ।
7- भारत चीन युद्ध, कारगिल युद्ध, लातूर के भूकम्प, उत्तरांचल आपदा आदि अवसरो पर प्रधान मंत्री सहायता कोष में उन्होने बड़ी राशि स्वतः प्रेरणा से बैंक जाकर दान दी है
8- उन्होने हजारो किताबें विभिन्न शालाओ व पुस्तकालयो में दान स्वरूप दी हैं जिससे पठन पाठन की संस्कृति को बढ़ावा मिले ।
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भारतमाता
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ए 1, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो.७०००३७५७९८७
भारतमाता शांतिदायिनी !
सघन हरित अभिराम वनांचल
पावन नदियां ज्यों गंगाजल
विविध अन्न फल फूल समृद्धा
जनहितकारी सुख विधायिनी
आनंद मूला मधुर भाषिणी
भारतमाता शांतिदायिनी
मर्यादित शालीन सुहानी
बहुभाषा भाषी कल्याणी
मुदित आनना निष्चल हृदया
पंपरागत ग्राम वासिनी
स्नेहपूर्ण मंजुल सुहासिनी
भारतमाता शांतिदायिनी
सरल सहज शुभ सात्विक रूपा
शुभदा लक्ष्मी ज्ञान अनूपा
अतिथिदेवो भव संस्कृति पोषक
अखिल विश्व समता प्रसारिणी
निर्मल प्रेम भाव धारिणी
भारतमाता शांतिदायिनी
भौतिक सुख समृद्धि प्रदात्री
आध्यात्मिक चिंतन सहयात्री
मलय पवन सुरभित शुभ आंचल
मृदुला नवजीवन प्रदायिनी
धर्म प्राण संताप हारिणी
भारतमाता शांतिदायिनी
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राम जाने कि क्यो राम आते नहीं ?
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
A 1 , MPEB Colony , Rampur Jabalpur
हो रहा आचरण का निरंतर पतन,राम जाने कि क्यो राम आते नहीं
हैं जहां भी कहीं हैं दुखी साधुजन दे के उनको शरण क्यों बचाते नहीं
उजड़ी केशर की क्यारी है बारूद से, रावी सतलज का जल खून से लाल है
धर्म के नाम नाहक ही फैला जुनूं , हर समझदार उलझन में बेहाल है
सारे कश्मीर में ,उधर आसाम में ,चल रही गोलियां और लगी आग है
कर रही आसुरी शक्ति विध्वंस यों , खून से गांव कोई न बेदाग है
खाने को दौड़ता सा है वातावरण , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं
रोज होते रहे जहां पूजन भजन , आज खण्डहर पड़े हैं कई वे भवन
यज्ञ करते रहे लोग जो देश हित , अब वही सैकड़ों हो रहे हैं हवन
छाया आतंक की बढ़ रही हर तरफ , घिर रहा है घरों में अंधेरा घना
लोग गुमसुम डरे सकपकाये से हैं , हरएक चेहरा नजर आता अनमना
बढ़ रहा खर औ" दूषण का नित अतिक्रमण ,राम जाने कि क्यो राम आते नहीं
बढ़ती जाती कलह हर जगह बेवजह , नेह सद्भाव पड़ते दिखाई नहीं
एकता , प्रेम , विश्वास हैं अधमरे , आदमियत आदमी से गुम हुई है कहीं
स्वार्थ , सिंहासनो पर अब आसीन हैं , कोई समझता नहीं है किसी की व्यथा
मिट गई रेखा लक्ष्मण ने खींची थी जो , महिमा मंडित है अपराधियों की कथा
है खुले आम रावण का आवागमन , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं
सारे आदर्श बस सुनने पढ़ने को हैं , आचरण में अधिकतर हैं मनमानियां
जिसकी लाठी है अब उसकी ही भैंस है , राजनेताओ में दिखती हैं नादानियां
स्वप्न में भी न सोचा जो होता है वो , हर समस्या उठाती नये प्रश्न कई
मान मिलता है अब कम समझदार को , भीड़ नेताओ की इतनी है बढ़ गई
हर जगह डगमगा गया है संतुलन , राम जाने कि क्यो राम आते नहीं
है सिसकती अयोध्या दुखी नागरिक, कट गये चित्रकूटों के रमणीक वन
स्वर्णमृग चर रहे दण्डकारण्य को, पंचवटियों में बढ़ रहा अपहरण
घूमते हैं असुर साधु के वेश में , अहिल्याये कई फिर बन गईं हैं शिला
सारी दुनियाँ में फैला अनाचार है, रुकता दिखता नहीं ये बुरा सिलसिला
हो रहा गाँव नगरों में सीता हरण ,राम जाने कि क्यों राम आते नहीं !
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सरस्वती वन्दना
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
vivek1959@yahoo.co.in
मो ७०००३७५७९८
शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,
डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !
हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,
स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना
आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,
चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !
सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना
बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना
रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और और ध्वंस है
बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे
ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई
बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई
उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में
भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे
चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में
जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में
थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में
हृदय को माँ ! पूर्णिमा का मधु भरा संसार दे
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शारदी चांदनी
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘
ए 1, एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर
मो.७०००३७५७९८७
शारदी चांदनी सा धुला मन, जब पपीहा सा तुमको पुकारे
सावनी घन घटा से उमड़ते , स्वप्न से तुम यहां चले आना
प्राण के तार खुद जनझना के , याद की वीथिका खोल देंगे
नैन मन की मिली योजना से, चित्र सब कुछ स्वतः बोल देंगे
बात करते स्वतः बावरे से , प्रेम रंग में रंगे सांवरे से
वीण से गीत गुनगुनाते , स्वप्न से तुम यहां चले आना
शारदी चांदनी सा धुला मन, जब पपीहा सा तुमको पुकारे
है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना
दिन कटे काम की उलझनो में , रात गिनते गगन के सितारे
सांस के पालने में झुलाये , आस डोरी पे सपने तुम्हारे
मंद मादक मलय के पवन से , गंध भीनी बसाये वसन से
मोह से मोहते मन लुभाते , स्वप्न से तुम यहां चले आना
है कसम तुम्हें मेरे सपन की, राह में भटक तुम न जाना
शारदी चांदनी सा धुला मन, जब पपीहा सा तुमको पुकारा
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दुर्गावती
प्रो.चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘‘विदग्ध‘‘
A 1 एमपीईबी कालोनी
रामपुर, जबलपुर 482008
मो. ७०००३७५७९८
गूंज रहा यश कालजयी उस वीरव्रती क्षत्राणी का
दुर्गावती गौडवाने की स्वाभिमानिनी रानी का।
उपजाये हैं वीर अनेको विध्ंयाचल की माटी ने
दिये कई है रत्न देश को माॅ रेवा की घाटी ने
उनमें से ही एक अनोखी गढ मंडला की रानी थी
गुणी साहसी शासक योद्धा धर्मनिष्ठ कल्याणी थी
युद्ध भूमि में मर्दानी थी पर ममतामयी माता थी
प्रजा वत्सला गौड राज्य की सक्षम भाग्य विधाता थी
दूर दूर तक मुगल राज्य भारत मे बढता जाता था
हरेक दिशा मे चमकदार सूरज सा चढता जाता था
साम्राज्य विस्तार मार्ग में जो भी राज्य अटकता था
बादशाह अकबर की आॅखो में वह बहुत खटकता था
एक बार रानी को अकबर ने स्वर्ण करेला भिजवाया
राज सभा को पर उसका कडवा निहितार्थ नहीं भाया
बदले मेे रानी ने सोने का एक पिंजन बनवाया
और कूट संकेत रूप मे उसे आगरा पहुॅचाया
दोनों ने समझी दोनों की अटपट सांकेतिक भाषा
बढा क्रोध अकबर का रानी से न थी वांछित आशा
एक तो था मेवाड प्रतापी अरावली सा अडिग महान
और दूसरा उठा गोंडवाना बन विंध्या की पहचान
घने वनों पर्वत नदियों से गौड राज्य था हरा भरा
लोग सुखी थे धन वैभव था थी समुचित सम्पन्न धरा
आती है जीवन मे विपदायें प्रायः बिना कहे
राजा दलपत शाह अचानक बीमारी से नहीं रहे
पुत्र वीर नारायण बच्चा था जिसका था तब तिलक हुआ
विधवा रानी पर खुद इससे रक्षा का आ पडा जुआ
रानी की शासन क्षमताओ, सूझ बूझ से जलकर के
अकबर ने आसफ खां को तब सेना दे भेजा लडने
बडी मुगल सेना को भी रानी ने बढकर ललकारा
आसफ खां सा सेनानी भी तीन बार उनसे हारा
तीन बार का हारा आसफ रानी से लेने बदला
नई फौज ले बढते बढते जबलपुर तक आ धमका
तब रानी ले अपनी सेना हो हाथी पर स्वतः सवार
युद्ध क्षेत्र मे रण चंडी सी उतरी ले कर मे तलवार
युद्ध हुआ चमकी तलवारे सेनाओ ने किये प्रहार
लगे भागने मुगल सिपाही खा गौडी सेना की मार
तभी अचानक पासा पलटा छोटी सी घटना के साथ
काली घटा गौडवानें पर छाई की जो हुई बरसात
भूमि बडी उबड खाबड थी और महिना था आषाढ
बादल छाये अति वर्षा हुई नर्रई नाले मे थी बाढ
छोटी सी सेना रानी की वर्षा के थे प्रबल प्रहार
तेज धार मे हाथी आगे बढ न सका नाले के पार
तभी फंसी रानी को आकर लगा आंख मे तीखा बाण
सारी सेना हतप्रभ हो गई विजय आश सब हो गई म्लान
सेना का नेतृत्व संभालें संकट मे भी अपने हाथ
ल्रडने को आई थी रानी लेकर सहज आत्म विश्वास
फिर भी निधडक रहीं बंधाती सभी सैनिको को वह आस
बाण निकाला स्वतः हाथ से हुआ हार का तब आभास
क्षण मे सारे दृश्य बदल गये बढे जोश और हाहाकार
दुश्मन के दस्ते बढ आये हुई सेना मे चीख पुकार
घिर गई रानी जब अंजानी रहा ना स्थिति पर अधिकार
तब सम्मान सुरक्षित रखने किया कटार हृदय के पार
स्वाभिमान सम्मान ज्ञान है मां रेवा के पानी मे
जिसकी आभा साफ झलकती हैं मंडला की रानी में
महोबे की बिटिया थी रानी गढ मंडला मे ब्याही थी
सारे गोडवाने में जन जन से जो गई सराही थी
असमय विधवा हुई थी रानी मां बन भरी जवानी में
दुख की कई गाथाये भरी है उसकी एक कहानी में
जीकर दुख में अपना जीवन था जनहित जिसका अभियान
24 जून 1564 को इस जग से किया प्रयाण
है समाधी अब भी रानी की नर्रई नाला के उस पार
गौर नदी के पार जहां हुई गौडो की मुगलों से हार
कभी जीत भी यश नहीं देती कभी जीत बन जाती हार
बडी जटिल है जीवन की गति समय जिसे दें जो उपहार
कभी दगा देती यह दुनियां कभी दगा देता आकाश
अगर न बरसा होता पानी तो कुछ अलग होता इतिहास
डवाने में जन जन से जो गई सराही थी
असमय विधवा हुई थी रानी मां बन भरी जवानी में
दुख की कई गाथाये भरी है उसकी एक कहानी में
जीकर दुख में अपना जीवन था जनहित जिसका अभियान
24 जून 1564 को इस जग से किया प्रयाण
है समाधी अब भी रानी की नर्रई नाला के उस पार
गौर नदी के पार जहां हुई गौडो की मुगलों से हार
कभी जीत भी यश नहीं देती कभी जीत बन जाती हार
बडी जटिल है जीवन की गति समय जिसे दें जो उपहार
कभी दगा देती यह दुनियां कभी दगा देता आकाश
अगर न बरसा होता पानी तो कुछ अलग होता इतिहास
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