कोरोना ने किया सभी का,
बहुत बुरा है हाल।
जाने कब जाएगा ये तो,
है जी का जंजाल।
नहीं किसी से मिल पाते हैं,
जाकर उसके द्वार।
और नहीं कोई आता तो,
कर पाते सत्कार।
नहीं धूम या धमा-चौकड़ी,
कहीं दिखी इस बार।
फीके-फीके निकल रहे हैं,
सारे ही त्यौहार।
बच्चे सारे घर बैठे हैं,
देखो मन को मार।
नहीं पढ़ाई होगी लगता,
गया साल बेकार।
चौपट धंधे सभी हो गए,
किस-किस का लें नाम।
श्रमिक फिरें सब मारे-मारे,
मिलता कहीं न काम।
डरी हुई है जनता सारी,
देख विश्व का हाल।
जाने कब,किसको खा जाए,
"कौरोना" बन काल।
बहुत हुआ अब हे प्रभु विनती,
है ये बारंबार।
रक्षक बनकर आओ जल्दी,
भक्षक को दो मार।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
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