पिता गगन माता धरा,
और विश्व परिवार।
मातु-पिता ही विश्व की,
रचना के आधार।
पिता बिना सच मानिए,
वैसे ही परिवार।
छप्पर बिन ज्यों झोपड़ी,
महल बिना आधार।
जड़ बापू को मानिए,
वृक्ष अगर परिवार।
जिसके दम पर झेलता,
आॅ॑धी की रफ़्तार।
पिता बिना भाए नहीं,
खुशी भरा संसार।
ज्यों साड़ी है नवलखा,
बिन प्रकाश बेकार।
पिता हमारी ढाल है,
दुनिया यदि तलवार।
आगे रहकर झेलता,
वो ही सारे वार।
राजेंद्र रायपुरी
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