राजेंद्र रायपुरी

रुलाती हैं यही आंखें हॅ॑साती हैं यही आॅ॑खें,


ख़ुशी या ग़म के आंसू हैं बताती हैं यही आॅ॑खें।


 


ज़रा तुम दूर ही रहना अधिक नज़दीक मत आना,


निशाना दूर तक हरदम लगाती हैं यही आॅ॑खें।


 


बड़ी मासूम लगती हैं मगर हैं तो नहीं वैसी,


सदा ही तीर आशिक़ पर चलाती हैं यही आॅ॑खें।


 


नहीं कोई है बच पाया नशे में ये डुबोती हैं,


कभी मदिरा,कभी प्याला तो साकी हैं यही आॅ॑खें।


 


भरा है प्यार इनमें तो भरी नफ़रत इन्हीं में है,


सुना है शूल राहों में बिछाती हैं यही आॅ॑खें।


            


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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