आल्हा छंद पर रचना
वीर-वधू कहती हैं भैया,
देखो हर दिन कर चित्कार।
बदला लिया नहीं साजन का,
खत्म हो गए क्या हथियार।
वादा था ये लेंगे बदला,
बीस नहीं हम सौ को मार।
लेकिन सके नहीं बदले में,
मार अभी तक दो या चार।
क्या जवाब मैं दूॅ॑ साजन को,
जो पूछें मुझसे हर बार।
कब तक हम वीरों का बदला,
दुश्मन से लेगी सरकार।
खून गिरा गलवान सजन का,
हर दिन कहता है चित्कार।
कोई तो बंदूक उठाए,
और करे दुश्मन संहार।
सूख न पाया इंतजार में,
बीते भले दिवस हैं साठ।
लहू देखना है दुश्मन का,
बाॅ॑धी है मैंने ये गाॅ॑ठ।
कोई तो प्रण पूरा कर दे,
पीर मुझे भारी है यार।
चैन कहो कैसे आएगा,
दुश्मन अभी रहा हूॅ॑कार।
देख पिय के रक्त की पीड़ा,
मेरे अॅ॑खियन बहती धार।
कोई तो उनसे बदला ले,
विनय यही है बारंबार।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें