मुखिया यदि रूठा है घर का,
कर लीजै मनुहार।
हॅ॑सी- खुशी से जी पाए वो,
बचे हुए दिन चार।
नैया यदि हम घर को समझें,
मुखिया है पतवार।
वही किनारे लाता नैया,
फॅ॑सी अगर मझधार।
दुनिया उनसे भी देखी है,
करें नहीं तक़रार।
और नहीं कुछ इस बेला में,
उसे चाहिए प्यार।
होगी उसको अति पीड़ा यदि,
मिला नहीं वो प्यार।
जिसकी आशा की थी उसने,
हरे-भरे परिवार।
।। राजेंद्र रायपुरी।।
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